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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1374
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - अग्निः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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त꣢म꣣ग्नि꣢꣫मस्ते꣣ व꣡स꣢वो꣣꣬ न्यृ꣢꣯ण्वन्त्सुप्रति꣣च꣢क्ष꣣म꣡व꣢से꣣ कु꣡त꣢श्चित् । द꣣क्षा꣢य्यो꣣ यो꣢꣫ दम꣣ आ꣢स꣣ नि꣡त्यः꣢ ॥१३७४॥

स्वर सहित पद पाठ

तम् । अ꣣ग्नि꣢म् । अ꣡स्ते꣢꣯ । व꣡स꣢꣯वः । नि । ऋ꣣ण्वन् । सुप्रतिच꣡क्ष꣢म् । सु꣣ । प्रतिच꣡क्ष꣢म् । अ꣡व꣢꣯से । कु꣡तः꣢꣯ । चि꣣त् । दक्षा꣡य्यः꣢ । यः । द꣡मे꣢꣯ । आ꣡स꣢꣯ । नि꣡त्यः꣢꣯ ॥१३७४॥


स्वर रहित मन्त्र

तमग्निमस्ते वसवो न्यृण्वन्त्सुप्रतिचक्षमवसे कुतश्चित् । दक्षाय्यो यो दम आस नित्यः ॥१३७४॥


स्वर रहित पद पाठ

तम् । अग्निम् । अस्ते । वसवः । नि । ऋण्वन् । सुप्रतिचक्षम् । सु । प्रतिचक्षम् । अवसे । कुतः । चित् । दक्षाय्यः । यः । दमे । आस । नित्यः ॥१३७४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1374
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
प्रथम—जीवात्मा के पक्ष में। (वसवः) अपने अन्दर श्रेष्ठ गुण-कर्म-स्वभावों को निवास करानेवाले मोक्ष पथ के पथिक लोग (कुतश्चित्) जहाँ कहीं से भी (अवसे) शत्रु से अपनी रक्षा के लिए (तम्) उस (सुप्रतिचक्षम्) श्रेष्ठ द्रष्टा (अग्निम्) जीवात्मा को (अस्ते) मोक्ष-धाम में (न्यृण्वन्) भेजते हैं, (यः) जो (दक्षाय्यः) बल बढ़ानेवाला, (नित्यः) नित्य, अविनाशी जीवात्मा, मुक्ति से पूर्व (दमे) शरीररूप घर में (आस) था ॥ द्वितीय—बिजली के पक्ष में। (वसवः) विद्युत्-विद्या में निवास किये हुए शिल्पी लोग (कुतश्चित्) किसी भी भय से (अवसे) रक्षा के लिए (तम्) उस (सुप्रतिचक्षम्) शुभ प्रकाश करनेवाले (अग्निम्) बिजलीरूप अग्नि को (अस्ते) प्रत्येक निवासगृह में (न्यृण्वन्) पहुँचाते हैं, (यः) जो (दक्षाय्यः) बलवान्, (नित्यः) नित्य, बिजली रूप अग्नि (दमे) कारखाने में (आस) था ॥२॥ यहाँ श्लेषालङ्कार है ॥२॥

भावार्थ - राष्ट्र में जैसे प्रजाजनों को अभ्युदय और निःश्रेयस का पथिक होना चाहिए, वैसे ही शिल्पियों को चाहिए कि बिजली पैदा करके प्रकाश के लिए और यन्त्र आदि को चलाने के लिए तारों द्वारा उसे घर-घर में लगा दें ॥२॥

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