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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1377
ऋषिः - सार्पराज्ञी
देवता - आत्मा सूर्यो वा
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
अ꣣न्त꣡श्च꣢रति रोच꣣ना꣢꣫स्य प्रा꣣णा꣡द꣢पान꣣ती꣢ । व्य꣢꣯ख्यन्महि꣣षो꣡ दिव꣢꣯म् ॥१३७७
स्वर सहित पद पाठअ꣣न्त꣡रिति꣢ । च꣣रति । रोचना꣢ । अ꣣स्य꣢ । प्रा꣣णा꣢त् । प्र꣣ । आना꣢त् । अ꣣पानती꣢ । अ꣣प । अनती꣢ । वि । अ꣣ख्यत् । महिषः꣢ । दि꣡व꣢꣯म् ॥१३७७॥
स्वर रहित मन्त्र
अन्तश्चरति रोचनास्य प्राणादपानती । व्यख्यन्महिषो दिवम् ॥१३७७
स्वर रहित पद पाठ
अन्तरिति । चरति । रोचना । अस्य । प्राणात् । प्र । आनात् । अपानती । अप । अनती । वि । अख्यत् । महिषः । दिवम् ॥१३७७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1377
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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विषय - द्वितीय ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ६३१ क्रमाङ्क पर सूर्य और परमात्मा के विषय में की जा चुकी है। यहाँ प्राणरूप सूर्य का वर्णन करते हैं।
पदार्थ -
(अस्य) इस प्राणरूप सूर्य की (रोचना) दीप्ति अर्थात् प्रभावशक्ति (प्राणाद् अपानती) प्राणन-क्रिया के पश्चात् अपान की क्रिया करती हुई (अन्तः) शरीर के अन्दर (चरति) विचरण करती है। (महिषः) महान् प्राण (दिवम्) शरीर के मूर्धा को भी (व्यख्यत्) प्रकाशित करता है ॥२॥
भावार्थ - जैसे बाह्य सौर जगत् में सूर्य ग्रह-उपग्रहों को धारण करता है,वैसे ही मानव- शरीर में जीवात्मासहित प्राण, मन, बुद्धि,मस्तिष्क, इन्द्रियों आदि को धारण करता है ॥२॥
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