Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1415
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
य꣡म꣢ग्ने पृ꣣त्सु꣢꣫ मर्त्य꣣म꣢वा꣣ वा꣡जे꣢षु꣣ यं꣢ जु꣣नाः꣢ । स꣢꣫ यन्ता꣣ श꣡श्व꣢ती꣣रि꣡षः꣢ ॥१४१५॥
स्वर सहित पद पाठय꣢म् । अ꣢ग्ने । पृत्सु꣡ । म꣡र्त्य꣢꣯म् । अ꣡वाः꣢꣯ । वा꣡जे꣢꣯षु । यम् । जु꣣नाः꣢ । सः । य꣡न्ता꣢꣯ । श꣡श्व꣢꣯तीः । इ꣡षः꣢꣯ ॥१४१५॥
स्वर रहित मन्त्र
यमग्ने पृत्सु मर्त्यमवा वाजेषु यं जुनाः । स यन्ता शश्वतीरिषः ॥१४१५॥
स्वर रहित पद पाठ
यम् । अग्ने । पृत्सु । मर्त्यम् । अवाः । वाजेषु । यम् । जुनाः । सः । यन्ता । शश्वतीः । इषः ॥१४१५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1415
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
विषय - प्रथम मन्त्र में अग्नि नाम से जगदीश्वर की स्तुति है।
पदार्थ -
हे (अग्ने) अग्रनायक, तेजस्वी, सर्वान्तर्यामी जगदीश्वर ! आप (यं मर्त्यम्) जिस मनुष्य की (पृत्सु) देवासुरसंग्रामों में (अवाः) रक्षा करो, (यम्) और जिसे (वाजेषु) आत्मिक,शारीरिक तथा सामाजिक बल की प्राप्ति के लिए (जुनाः) प्रेरित करो, (सः) वह (शश्वतीः) बहुत सी (इषः) अध्यात्म सम्पदाओं को (यन्ता) प्राप्त कर ले ॥१॥
भावार्थ - मनुष्य को विजय के लिए और ऐहिक तथा पारलौकिक समृद्धि के लिए अपने पुरुषार्थ के अतिरिक्त परमात्मा की कृपा भी अपेक्षित होती है ॥१॥
इस भाष्य को एडिट करें