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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1416
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
न꣡ कि꣢रस्य सहन्त्य पर्ये꣣ता꣡ कय꣢꣯स्य चित् । वा꣡जो꣢ अस्ति श्र꣣वा꣡य्यः꣢ ॥१४१६॥
स्वर सहित पद पाठन । किः꣢ । अस्य । सहन्त्य । पर्येता꣢ । प꣣रि । एता꣢ । क꣡य꣢꣯स्य । चि꣣त् । वा꣡जः꣢꣯ । अ꣡स्ति । श्रवा꣡य्यः꣢ ॥१४१६॥
स्वर रहित मन्त्र
न किरस्य सहन्त्य पर्येता कयस्य चित् । वाजो अस्ति श्रवाय्यः ॥१४१६॥
स्वर रहित पद पाठ
न । किः । अस्य । सहन्त्य । पर्येता । परि । एता । कयस्य । चित् । वाजः । अस्ति । श्रवाय्यः ॥१४१६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1416
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में परमेश्वर की कृपा का फल वर्णित है।
पदार्थ -
हे (सहन्त्य) शत्रुओं को तिरस्कृत करनेवाले अग्रणी परमात्मन् ! (कयस्य चित्) युद्ध विद्या के ज्ञाता (अस्य) इस आपके स्तोता को (पर्येता) घेरनेवाला वा उस पर आक्रमण करनेवाला (न किः) कोई नहीं होता, प्रत्युत (वाजः) युद्ध (श्रवाय्यः) उसका यश फैलानेवाला (अस्ति) होता है ॥२॥
भावार्थ - जिस पर जगदीश्वर कृपा करता है, उसे युद्ध में कोई भी हरा नहीं सकता, अपितु वह विजयश्री को प्राप्त करता है ॥२॥
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