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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1437
ऋषिः - कविर्भार्गवः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
घृ꣣तं꣡ प꣢वस्व꣣ धा꣡र꣢या य꣣ज्ञे꣡षु꣢ देव꣣वी꣡त꣢मः । अ꣣स्म꣡भ्यं꣢ वृ꣣ष्टि꣡मा प꣢꣯व ॥१४३७॥
स्वर सहित पद पाठघृ꣣त꣢म् । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । य꣣ज्ञे꣡षु꣢ । दे꣣ववी꣡त꣢मः । दे꣣व । वी꣡त꣢꣯मः । अ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । वृ꣣ष्टि꣢म् । आ । प꣣व ॥१४३७॥
स्वर रहित मन्त्र
घृतं पवस्व धारया यज्ञेषु देववीतमः । अस्मभ्यं वृष्टिमा पव ॥१४३७॥
स्वर रहित पद पाठ
घृतम् । पवस्व । धारया । यज्ञेषु । देववीतमः । देव । वीतमः । अस्मभ्यम् । वृष्टिम् । आ । पव ॥१४३७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1437
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - आगे फिर परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ -
हे जगत्पति ! (यज्ञेषु) उपासनारूप यज्ञों में (देववीतमः) अतिशय दिव्य गुणों को प्राप्त करानेवाले आप (धारया) धारा रूप में (घृतम्) स्नेह तथा दीप्ति को (पवस्व) हमारे लिए प्रेरित करो। (अस्मभ्यम्) हम उपासकों के लिए (वृष्टिम्) आनन्दवर्षा को (आ पव) रिमझिम बरसाओ ॥३॥
भावार्थ - उपासना किया हुआ जगदीश्वर उपासक के लिए अपने प्रेम, आनन्द और अक्षयतेज को प्रदान करता है ॥३॥
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