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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1436
ऋषिः - कविर्भार्गवः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
त꣡या꣢ पवस्व꣣ धा꣡र꣢या꣣ य꣢या꣣ गा꣡व꣢ इ꣣हा꣢गम꣢꣯न् । ज꣡न्या꣢स꣣ उ꣡प꣢ नो गृ꣣ह꣢म् ॥१४३६॥
स्वर सहित पद पाठत꣡या꣢꣯ । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । य꣡या꣢꣯ । गा꣡वः꣢꣯ । इ꣣ह꣢ । आ꣣ग꣡म꣢न् । आ꣢ । ग꣡म꣢꣯न् । ज꣡न्या꣢꣯सः । उ꣡प꣢꣯ । नः꣣ । गृह꣢म् ॥१४३६॥
स्वर रहित मन्त्र
तया पवस्व धारया यया गाव इहागमन् । जन्यास उप नो गृहम् ॥१४३६॥
स्वर रहित पद पाठ
तया । पवस्व । धारया । यया । गावः । इह । आगमन् । आ । गमन् । जन्यासः । उप । नः । गृहम् ॥१४३६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1436
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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विषय - आगे फिर उसी विषय में कहा गया है।
पदार्थ -
हे तेज के धाम परमात्मन् ! आप (तया धारया) उस तेज की धारा से (पवस्व) हमें पवित्र करो, (यया) जिस धारा से (इह) यहाँ (नः गृहम्) हमारे हृदय-सदन में (जन्यासः) उत्तरोत्तर जन्म लेनेवाली (गावः) तेज की किरणें (उपागमन्) उपस्थित हो जाएँ ॥२॥
भावार्थ - परमात्मा के पास से प्रवाहित होते हुए तेज उसके स्तोताओं को तेजस्वी बना देते हैं ॥२॥
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