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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1436
    ऋषिः - कविर्भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    39

    त꣡या꣢ पवस्व꣣ धा꣡र꣢या꣣ य꣢या꣣ गा꣡व꣢ इ꣣हा꣢गम꣢꣯न् । ज꣡न्या꣢स꣣ उ꣡प꣢ नो गृ꣣ह꣢म् ॥१४३६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त꣡या꣢꣯ । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । य꣡या꣢꣯ । गा꣡वः꣢꣯ । इ꣣ह꣢ । आ꣣ग꣡म꣢न् । आ꣢ । ग꣡म꣢꣯न् । ज꣡न्या꣢꣯सः । उ꣡प꣢꣯ । नः꣣ । गृह꣢म् ॥१४३६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तया पवस्व धारया यया गाव इहागमन् । जन्यास उप नो गृहम् ॥१४३६॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तया । पवस्व । धारया । यया । गावः । इह । आगमन् । आ । गमन् । जन्यासः । उप । नः । गृहम् ॥१४३६॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1436
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आगे फिर उसी विषय में कहा गया है।

    पदार्थ

    हे तेज के धाम परमात्मन् ! आप (तया धारया) उस तेज की धारा से (पवस्व) हमें पवित्र करो, (यया) जिस धारा से (इह) यहाँ (नः गृहम्) हमारे हृदय-सदन में (जन्यासः) उत्तरोत्तर जन्म लेनेवाली (गावः) तेज की किरणें (उपागमन्) उपस्थित हो जाएँ ॥२॥

    भावार्थ

    परमात्मा के पास से प्रवाहित होते हुए तेज उसके स्तोताओं को तेजस्वी बना देते हैं ॥२॥

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    पदार्थ

    (तया धारया पवस्व) हे परमात्मन्! तू अपनी उस धारण शक्ति से३ प्राप्त हो (यया गावः-इह-आगमन्) जिससे तेरी वाणियाँ—४वेदवाणियाँ यहाँ अन्तःकरण में आजावे सात्म्य हो जावे (जन्यासः-नः-गृहम्-उप) उन वाणियों से जन्य—उत्पन्न सुख लाभ हृदय को प्राप्त हो॥२॥

    विशेष

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    विषय

    गौवें आनन्द व प्रेम

    पदार्थ

    वृष्टि के ठीक होने पर सुभिक्ष होता है। सुभिक्ष गोपालनादि में सहायक होता है तथा सब घरों में आनन्द-मङ्गल बना रहता है । इसी भावना को 'कविर्भार्गव' इस रूप में कहता है कि -

    हे सोम! आप (तया) = उस (धारया) = धारण करनेवाली वृष्टि जल धारा से (पवस्व) = जलों को आकाश से क्षरित कीजिए (यया) = जिससे (इह) = यहाँ — हमारे घरों में (गाव:) = गौवें (आगमन्) = आएँ । हमें चारे इत्यादि की कमी न होने से गौवों के रखने की सुविधा हो और परिणामत: (न: गृहम् उप) = हमारे घरों के समीप (जन्यासः) = आनन्द-ही-आनन्द [ pleasure, happiness ] हो तथा उनमें प्रेम [Affection] का राज्य हो ।

    जिस घर में गौवों का निवास होता है वहाँ १. शरीर स्वस्थ होते हैं, २. मन विशाल होता है तथा ३. बुद्धि तीव्र व सात्त्विक होती है। परिणामतः वहाँ आनन्द द- ही - आनन्द होता है । सब लोग परस्पर प्रेम से रहते हैं ।

    भावार्थ

    वृष्टि ठीक हो और हम घरों में गौवों को रक्खें, जिससे हममें नीरोगता, निश्छलता व निःस्वार्थता का आनन्द हो और परस्पर प्रेम हो ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे (सोम) परमेश्वर वा योगिन् ! (तया) उस (धारया) धारा से या धारणा शक्ति से (पवस्व) प्रेरित कर (यया) जिससे (गावः) दीप्त-रश्मियां, कान्तियां एवं ज्ञानवाणियां (इह) इस हमारे अन्तःकरण, एवं गृह में (आगमन्) प्राप्त हों। और (जन्यासः) जन, मनुष्य एवं प्राणियों के हितकारक पदार्थ भी (नः) हमारे (गृहम्) देह और गेह को (उष) प्राप्त हों।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ कविर्भार्गवः। २, ९, १६ भरद्वाजो बार्हस्पत्यः। ३ असितः काश्यपो देवलो वा। ४ सुकक्षः। ५ विभ्राट् सौर्यः। ६, ८ वसिष्ठः। ७ भर्गः प्रागाथः १०, १७ विश्वामित्रः। ११ मेधातिथिः काण्वः। १२ शतं वैखानसाः। १३ यजत आत्रेयः॥ १४ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः। १५ उशनाः। १८ हर्यत प्रागाथः। १० बृहद्दिव आथर्वणः। २० गृत्समदः॥ देवता—१, ३, १५ पवमानः सोमः। २, ४, ६, ७, १४, १९, २० इन्द्रः। ५ सूर्यः। ८ सरस्वान् सरस्वती। १० सविता। ११ ब्रह्मणस्पतिः। १२, १६, १७ अग्निः। १३ मित्रावरुणौ। १८ अग्निर्हवींषि वा॥ छन्दः—१, ३,४, ८, १०–१४, १७, १८। २ बृहती चरमस्य, अनुष्टुप शेषः। ५ जगती। ६, ७ प्रागाथम्। १५, १९ त्रिष्टुप्। १६ वर्धमाना पूर्वस्य, गायत्री उत्तरयोः। १० अष्टिः पूर्वस्य, अतिशक्वरी उत्तरयोः॥ स्वरः—१, ३, ४, ८, ९, १०-१४, १६-१८ षड्जः। २ मध्यमः, चरमस्य गान्धारः। ५ निषादः। ६, ७ मध्यमः। १५, १९ धैवतः। २० मध्यमः पूर्वस्य, पञ्चम उत्तरयोः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनस्तमेव विषयमाह।

    पदार्थः

    हे तेजोधाम परमात्मन् ! त्वम् (तया धारया) तया तेजोधारया (पवस्व) अस्मान् पुनीहि (यया) धारया (इह) अत्र (नः गृहम्) अस्माकं हृदयसदनम् (जन्यासः) उत्तरोत्तरं जन्म गृह्णानाः। [अत्र ‘जनेर्यक्’। उ० ४।११२ इति यक् प्रत्ययः।] (गावः) तेजोरश्मयः (उपागमन्) उपागच्छन्तु ॥२॥

    भावार्थः

    परमात्मनः सकाशात् प्रस्रवन्ति तेजांसि तत्स्तोतॄन् तेजस्विनः कुर्वन्ति ॥२॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, urge us with that steady abstraction of the mind, whereby the rays of knowledge may come to our heart, and all the objects conductive to the welfare of man be present in Our home !

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    Meaning

    Shower and purify us with that stream of power and purity of peace and plenty by which our senses, mind and intelligence, socially and positively motivated, may be balanced in our personality and we may feel at home with ourselves. (Rg. 9-49-2)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (तया धारया पवस्व) હે પરમાત્મન્ ! તું પોતાની ધારણા શક્તિથી પ્રાપ્ત થા, (यया गावः इह आगमन्) જેથી તારી વાણીઓ-વેદવાણીઓ અહીં અન્તઃકરણમાં આવી જાય-સાત્મ્ય બની જાય. (जन्यासः नः गृहम् उप) એ વાણીઓથી જન્ય-ઉત્પન્ન સુખલાભ હૃદયને પ્રાપ્ત થાય.
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याकडून प्रवाहित होणारे तेज त्याच्या प्रशंसकांना तेजस्वी बनवितात. ॥२॥

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