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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1440
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
7
प्र꣡त्य꣢स्मै꣣ पि꣡पी꣢षते꣣ वि꣡श्वा꣢नि वि꣣दु꣡षे꣢ भर । अ꣣रङ्गमा꣢य꣣ ज꣢ग्म꣣ये꣡ऽप꣢श्चादध्वने꣣ न꣡रः꣢ ॥१४४०॥
स्वर सहित पद पाठप्र꣡ति꣢꣯ । अ꣣स्मै । पि꣡पी꣢꣯षते । वि꣡श्वा꣢꣯नि । वि꣣दु꣡षे꣢ । भ꣣र । अरङ्गमा꣡य꣢ । अ꣣रम् । ग꣡मा꣢य । ज꣡ग्म꣢꣯ये । अ꣡प꣢꣯श्चादध्वने । अ꣡प꣢꣯श्चा । द꣣ध्वने । न꣡रः꣢꣯ ॥१४४०॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रत्यस्मै पिपीषते विश्वानि विदुषे भर । अरङ्गमाय जग्मयेऽपश्चादध्वने नरः ॥१४४०॥
स्वर रहित पद पाठ
प्रति । अस्मै । पिपीषते । विश्वानि । विदुषे । भर । अरङ्गमाय । अरम् । गमाय । जग्मये । अपश्चादध्वने । अपश्चा । दध्वने । नरः ॥१४४०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1440
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ३५२ क्रमाङ्क पर परमात्मा और आचार्य के विषय में की जा चुकी है। यहाँ जगदीश्वर की उपासना का विषय दर्शाते हैं।
पदार्थ -
हे मानव ! (नरः) पुरुषार्थी तू (पिपीषते) तेरे श्रद्धारस को पान करने के इच्छुक, (विश्वानि विदुषे) सब जानने योग्य विषयों को जाननेवाले, (अरङ्गमाय) पर्याप्त देनेवाले, (जग्मये) क्रियाशील, (अपश्चा-दध्वने) पीछे पग न रखनेवाले (अस्मै) इस इन्द्र जगदीश्वर के लिए (प्रतिभर) श्रद्धा का उपहार प्रदान कर ॥१॥
भावार्थ - परमात्मा में श्रद्धा रखता हुआ मनुष्य कभी जीवन में पतन को प्राप्त नहीं करता ॥१॥
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