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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1450
ऋषिः - सुकक्ष आङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
उ꣢꣯द्घेद꣣भि꣢ श्रु꣣ता꣡म꣢घं वृष꣣भं꣡ नर्या꣢꣯पसम् । अ꣡स्ता꣢रमेषि सूर्य ॥१४५०॥
स्वर सहित पद पाठउ꣢त् । घ꣣ । इ꣢त् । अ꣣भि꣢ । श्रु꣣ता꣡म꣢घम् । श्रु꣣त꣢ । म꣣घम् । वृषभ꣢म् । न꣡र्या꣢꣯पसम् । न꣡र्य꣢꣯ । अ꣣पसम् । अ꣡स्ता꣢꣯रम् । ए꣣षि । सूर्य ॥१४५०॥
स्वर रहित मन्त्र
उद्घेदभि श्रुतामघं वृषभं नर्यापसम् । अस्तारमेषि सूर्य ॥१४५०॥
स्वर रहित पद पाठ
उत् । घ । इत् । अभि । श्रुतामघम् । श्रुत । मघम् । वृषभम् । नर्यापसम् । नर्य । अपसम् । अस्तारम् । एषि । सूर्य ॥१४५०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1450
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में १२५ क्रमाङ्क पर परमात्मा को सम्बोधन की गयी थी। परमात्मा का प्रचार भी उन्नत राष्ट्र में ही हो सकता है, इसलिए यहाँ राष्ट्रोन्नति के निमित्त राजा का विषय वर्णित करते हैं।
पदार्थ -
हे (सूर्य) सूर्य के समान प्रतापी वीर ! आप (श्रुतामघम्) प्रसिद्ध धनोंवाले, (वृषभम्) बलवान् (नर्यापसम्) मनुष्यों के हितकारक कर्मों को करनेवाले, (अस्तारम्) दुःख, दुर्गुण, दुर्व्यसन आदि को परे फ़ेंक देनेवाले प्रजाजन को (घ इत्) ही (अभि) लक्ष्य करके (उदेषि) राजा रूप में राष्ट्रगगन में उदित होते हो ॥१॥
भावार्थ - जिसके राज्य में सुयोग्य प्रजाएँ हैं, वही राजा सुयोग्य माना जाता है ॥१॥
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