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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1452
ऋषिः - सुकक्ष आङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
7
स꣢ न꣣ इ꣡न्द्रः꣢ शि꣣वः꣡ सखाश्वा꣢꣯व꣣द्गो꣢म꣣द्य꣡व꣢मत् । उ꣣रु꣡धा꣢रेव दोहते ॥१४५२॥
स्वर सहित पद पाठसः꣢ । नः꣣ । इन्द्रः । शि꣡वः꣢꣯ । स꣡खा꣢꣯ । स । खा꣣ । अ꣡श्वा꣢꣯वत् । गो꣡म꣢꣯त् । य꣡व꣢꣯मत् । उ꣣रु꣡धा꣢रा । उ꣣रु꣢ । धा꣣रा । इव । दोहते ॥१४५२॥
स्वर रहित मन्त्र
स न इन्द्रः शिवः सखाश्वावद्गोमद्यवमत् । उरुधारेव दोहते ॥१४५२॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । नः । इन्द्रः । शिवः । सखा । स । खा । अश्वावत् । गोमत् । यवमत् । उरुधारा । उरु । धारा । इव । दोहते ॥१४५२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1452
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में यह कहते हैं कि राजा प्रजाओं के लिए क्या करे।
पदार्थ -
(सः) वह (नः) हमारा (शिवः) मङ्गलकारी, (सखा) मित्र (इन्द्रः) वीर राजा (अश्वावत्) घोड़ों से युक्त, (गोमत्) गायों से युक्त (यवमत्) जौ आदि अन्नों से युक्त धन को (दोहते) हमारे लिए दुह कर दे, (उरुधारा इव) जैसे मोटी धारोंवाली दुधारु गाय दूध देती है ॥३॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥३॥
भावार्थ - वही राजा होने योग्य है, जो प्रजाजनों को धन, धान्य, गाय, घोड़े आदि सम्पदाओं से समृद्ध कर सके, क्योंकि समृद्ध लोग ही अध्यात्म-मार्ग पर चलना चाहते हैं ॥३॥ इस खण्ड में परमात्मा की उपासना के तथा राजनीति के विषय का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति जाननी चाहिए ॥ तेरहवें अध्याय में द्वितीय खण्ड समाप्त ॥
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