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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1464
ऋषिः - शतं वैखानसाः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
6

अ꣢ग्न꣣ आ꣡यू꣢ꣳषि पवस꣣ आ꣢ सु꣣वो꣢र्ज꣣मि꣡षं꣢ च नः । आ꣣रे꣡ बा꣢धस्व दु꣣च्छु꣡ना꣢म् ॥१४६४॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡ग्ने꣢꣯ । आ꣡यू꣢꣯ꣳषि । प꣣वसे । आ꣢ । सु꣣व । ऊ꣡र्ज꣢꣯म् । इ꣡ष꣢꣯म् । च꣣ । नः । आरे꣢ । बा꣣धस्व । दुच्छुना꣡म्꣢ ॥१४६४॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्न आयूꣳषि पवस आ सुवोर्जमिषं च नः । आरे बाधस्व दुच्छुनाम् ॥१४६४॥


स्वर रहित पद पाठ

अग्ने । आयूꣳषि । पवसे । आ । सुव । ऊर्जम् । इषम् । च । नः । आरे । बाधस्व । दुच्छुनाम् ॥१४६४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1464
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
हे (अग्ने) चरित्र को ऊँचा उठानेवाले आचार्यवर ! आप शिष्यों के (आयूंषि) जीवनों को (पवसे) पवित्र करते हो। (नः) हम शिष्यों के लिए (ऊर्जम्) आत्मबल वा चरित्र-बल, (इषं च) और अभीष्ट विद्या (आसुव) प्रदान करो। (दुच्छुनाम्) दुर्गति करनेवाली अविद्या को (आरे) दूर (बाधस्व) बाधित कर दो ॥३॥

भावार्थ - श्रेष्ठ आचार्य को प्राप्त कर विद्यार्थी पवित्रात्मा और विद्वान् होकर समावर्तन के अनन्तर घर आकर राष्ट्र को उन्नत करें ॥३॥

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