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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1476
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
वे꣢त्था꣣ हि꣡ वे꣢धो꣣ अ꣡ध्व꣢नः प꣣थ꣡श्च꣢ दे꣣वा꣡ञ्ज꣢सा । अ꣡ग्ने꣢ य꣣ज्ञे꣡षु꣢ सुक्रतो ॥१४७६॥
स्वर सहित पद पाठवे꣡त्थ꣢꣯ । हि । वे꣣धः । अ꣡ध्व꣢꣯नः । प꣣थः꣢ । च꣣ । देव । अ꣡ञ्ज꣢꣯सा । अ꣡ग्ने꣢꣯ । य꣣ज्ञे꣡षु꣢ । सु꣣क्रतो । सु । क्रतो ॥१४७६॥
स्वर रहित मन्त्र
वेत्था हि वेधो अध्वनः पथश्च देवाञ्जसा । अग्ने यज्ञेषु सुक्रतो ॥१४७६॥
स्वर रहित पद पाठ
वेत्थ । हि । वेधः । अध्वनः । पथः । च । देव । अञ्जसा । अग्ने । यज्ञेषु । सुक्रतो । सु । क्रतो ॥१४७६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1476
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में परमात्मा के उपकार का वर्णन है।
पदार्थ -
हे (वेधः) जगत् के विधाता, (देव) सबको प्रकाशित करनेवाले, (सुक्रतो) शुभ प्रजा और शुभ कर्मोंवाले, (अग्ने) अग्रनायक, सर्वज्ञ, सर्वान्तर्यामी परमात्मन् ! आप (हि) निश्चय ही (यज्ञेषु) जीवनयज्ञों में (अञ्जसा) शीघ्र या सरलतापूर्वक, हमारे लिए (अध्वनः) अभ्युदय के (पथः) और निश्रेयस के मार्गों को (वेत्थ) जानते तथा जनाते हो ॥३॥
भावार्थ - जगदीश्वर हमें, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के मार्गों को जनाकर हमारा परम मित्र होता है ॥३॥
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