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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1500
ऋषिः - वत्सः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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अ꣣ह꣢꣫मिद्धि पि꣣तु꣡ष्परि꣢꣯ मे꣣धा꣢मृ꣣त꣡स्य꣢ ज꣣ग्र꣡ह꣢ । अ꣣ह꣡ꣳ सूर्य꣢꣯ इवाजनि ॥१५००॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣ह꣢म् । इत् । हि । पि꣣तुः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । मे꣣धा꣢म् । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । ज꣣ग्र꣡ह꣢ । अ꣣ह꣢म् । सू꣡र्यः꣢꣯ । इ꣣व । अजनि ॥१५००॥


स्वर रहित मन्त्र

अहमिद्धि पितुष्परि मेधामृतस्य जग्रह । अहꣳ सूर्य इवाजनि ॥१५००॥


स्वर रहित पद पाठ

अहम् । इत् । हि । पितुः । परि । मेधाम् । ऋतस्य । जग्रह । अहम् । सूर्यः । इव । अजनि ॥१५००॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1500
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(अहम्) मैंने (इत् हि) निश्चय ही (पितुः परि) पालनकर्ता पिता, आचार्य वा परमेश्वर से (ऋतस्य) सत्य ज्ञान और सत्य आचरण की (मेधाम्) बुद्धि को (जग्रह) ग्रहण कर लिया है। (अहम्) सत्यज्ञान वा सत्य आचरण को प्राप्त मैं (सूर्यः इव) सूर्य के समान सर्वोन्नत, प्रकाशवान् और प्रकाशक (अजनि) हो गया हूँ ॥१॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥१॥

भावार्थ - जो माता, पिता वा आचार्य के पास से तथा परमेश्वर की प्रेरणा से सब विद्याओं और सदाचार को सीखकर उनका यथायोग्य सत्कार तथा पूजन करते हैं और दूसरों को विद्याएँ तथा सदाचार सिखाते हैं, वे प्रशंसित होते हैं ॥१॥

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