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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1501
ऋषिः - वत्सः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
अ꣣हं꣢ प्र꣣त्ने꣢न꣣ ज꣡न्म꣢ना꣣ गि꣡रः꣢ शुम्भामि कण्व꣣व꣢त् । ये꣢꣫नेन्द्रः꣣ शु꣢ष्म꣣मि꣢द्द꣣धे꣢ ॥१५०१॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣ह꣢म् । प्र꣣त्ने꣡न꣢ । ज꣡न्म꣢꣯ना । गि꣡रः꣢꣯ । शु꣣म्भाभि । कण्वव꣢त् । ये꣡न꣢꣯ । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । शु꣡ष्म꣢꣯म् । इत् । द꣣धे꣢ ॥१५०१॥
स्वर रहित मन्त्र
अहं प्रत्नेन जन्मना गिरः शुम्भामि कण्ववत् । येनेन्द्रः शुष्ममिद्दधे ॥१५०१॥
स्वर रहित पद पाठ
अहम् । प्रत्नेन । जन्मना । गिरः । शुम्भाभि । कण्ववत् । येन । इन्द्रः । शुष्मम् । इत् । दधे ॥१५०१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1501
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में फिर वही विषय है।
पदार्थ -
(अहम्) मैं महत्वाकाङ्क्षी जन (प्रत्नेन जन्मना) आचार्य के पास से प्राप्त श्रेष्ठ जन्म से (कण्ववत्) मेधावी विद्वान् के समान (गिरः) अपनी वाणियों को (शुम्भामि) सत्य भाषण से अलङ्कृत करता हूँ, (येन) जिससे (इन्द्रः) मेरा जीवात्मा (शुष्मम् इत्) बल को ही (दधे) धारण करता है ॥२॥
भावार्थ - आचार्य और सावित्री के पास से द्वितीय जन्म ग्रहण कर, द्विज होकर जो मन, वाणी और कर्म से सत्य का ही अनुष्ठान करता है, वह पवित्र आत्मावाला और सबल आत्मावाला होकर सबसे सत्कार पाता है ॥२॥
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