Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1505
ऋषिः - अग्निस्तापसः
देवता - विश्वे देवाः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
5
त्वं꣡ नो꣢ अग्ने अ꣣ग्नि꣢भि꣣र्ब्र꣡ह्म꣢ य꣣ज्ञं꣡ च꣢ वर्धय । त्वं꣡ नो꣢ दे꣣व꣡ता꣢तये रा꣣यो꣡ दाना꣢꣯य चोदय ॥१५०५॥
स्वर सहित पद पाठत्व꣢म् । नः꣣ । अग्ने । अग्नि꣡भिः꣢ । ब्र꣡ह्म꣢꣯ । य꣣ज्ञ꣢म् । च꣣ । वर्धय । त्व꣢म् । नः꣣ । देव꣡ता꣢तये । रा꣣यः꣢ । दा꣡ना꣢꣯य । चो꣣दय ॥१५०५॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं नो अग्ने अग्निभिर्ब्रह्म यज्ञं च वर्धय । त्वं नो देवतातये रायो दानाय चोदय ॥१५०५॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । नः । अग्ने । अग्निभिः । ब्रह्म । यज्ञम् । च । वर्धय । त्वम् । नः । देवतातये । रायः । दानाय । चोदय ॥१५०५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1505
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment
विषय - आगे फिर उसी विषय को कहा गया है।
पदार्थ -
हे (अग्ने) अग्रणायक, ज्योतिप्रदायक, सर्वान्तर्यामी, सर्वज्ञ जगदीश्वर ! (त्वम्) सर्वशक्तिमान् आप (अग्निभिः) अपनी ज्योतियों से (नः) हमारे (ब्रह्म) जीवात्मा को (यज्ञं च) और हमारे द्वारा किये जानेवाले उपासना, मानवसेवा आदि यज्ञ को (वर्धय) बढ़ाओ। आप (देवतातये) राष्ट्रोत्थानरूप यज्ञ की पूर्ति के लिए (नः) हमें (रायः) विद्या, सुवर्ण, धान्य आदि धन के (दानाय) दान के लिए (चोदय) प्रेरित करो ॥३॥
भावार्थ - परमात्मा के तेज से तेजस्वी होकर हम परमात्मा के समान परोपकार-यज्ञ में संलग्न होवें और विद्या, धन, धान्य आदि का दान करते हुए समाज को उन्नत करें ॥३॥
इस भाष्य को एडिट करें