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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1504
ऋषिः - अग्निस्तापसः
देवता - विश्वे देवाः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
5
प्र꣡ स विश्वे꣢꣯भिर꣣ग्नि꣡भि꣢र꣣ग्निः꣡ स यस्य꣢꣯ वा꣣जि꣡नः꣢ । त꣡न꣢ये तो꣣के꣢ अ꣣स्म꣢꣫दा स꣣म्य꣢꣫ङ्वाजैः꣢ प꣡री꣢वृतः ॥१५०४
स्वर सहित पद पाठप्र । सः । वि꣡श्वे꣢꣯भिः । अ꣣ग्नि꣡भिः꣢ । अ꣣ग्निः꣢ । सः । य꣡स्य꣢꣯ । वा꣣जि꣡नः꣢ । त꣡नये꣢꣯ । तो꣣के꣢ । अ꣣स्म꣢त् । आ । स꣣म्य꣢ङ् । वा꣡जैः꣢꣯ । प꣡री꣢꣯वृतः । प꣡रि꣢꣯ । वृ꣣तः ॥१५०४॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र स विश्वेभिरग्निभिरग्निः स यस्य वाजिनः । तनये तोके अस्मदा सम्यङ्वाजैः परीवृतः ॥१५०४
स्वर रहित पद पाठ
प्र । सः । विश्वेभिः । अग्निभिः । अग्निः । सः । यस्य । वाजिनः । तनये । तोके । अस्मत् । आ । सम्यङ् । वाजैः । परीवृतः । परि । वृतः ॥१५०४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1504
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में पुनः वही विषय है।
पदार्थ -
(अग्निः) अग्नि नाम से प्रसिद्ध जगदीश्वर (सः) वह है, (यस्य) जिसके रचे हुए (वाजिनः) बलवान् मन, बुद्धि, प्राण, आदि और सूर्य, चन्द्र आदि हैं। (सः) वह (विश्वेभिः अग्निभिः) अपनी रची हुई आग, बिजली, सूर्य आदि सब अग्नियों के कारण (प्र) प्रशंसनीय बना हुआ है। (वाजैः) बलों से (परीवृतः) घिरा हुआ वह (अस्मत्) हममें और (तोके तनये) हमारे पुत्र, पौत्र आदियों में (सम्यङ्) भली-भाँति (आ) आये ॥२॥
भावार्थ - न केवल हम, प्रत्युत हमारी भावी सन्ततियाँ भी अध्यात्ममार्ग की पथिक होवें ॥२॥
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