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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1518
ऋषिः - शतं वैखानसाः
देवता - अग्निः पवमानः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
अ꣢ग्न꣣ आ꣡यू꣢ꣳषि पवस꣣ आसुवोर्जमिषं च नः । आरे बाधस्व दुच्छुनाम् ॥१५१८॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡ग्ने꣢꣯ । आ꣡यू꣢꣯ꣳषि । प꣣वसे । आ꣢ । सु꣣व । ऊ꣡र्ज꣢꣯म् । इ꣡ष꣢꣯म् । च꣣ । नः । आरे꣢ । बाध꣣स्व । दु꣣च्छु꣡ना꣢म् ॥१५१८॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्न आयूꣳषि पवस आसुवोर्जमिषं च नः । आरे बाधस्व दुच्छुनाम् ॥१५१८॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्ने । आयूꣳषि । पवसे । आ । सुव । ऊर्जम् । इषम् । च । नः । आरे । बाधस्व । दुच्छुनाम् ॥१५१८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1518
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में ६२७ क्रमाङ्क पर परमात्मा, विद्वान् और राजा को तथा उत्तरार्चिक में १४६४ क्रमाङ्क पर आचार्य को सम्बोधित की गयी थी। यहाँ योगिराज को सम्बोधन करते हैं।
पदार्थ -
हे (अग्ने) विद्वान् योगिराज ! आप (नः) हमारे लिए (ऊर्जम्) प्राणबल (इषं च) और इच्छासिद्धि को (आसुव) प्रदान करो। (दुच्छुनाम्) योगमार्ग में विघ्नभूत दुश्चरित्रता को (आरे) दूर (बाधस्व) धकेल दो ॥१॥
भावार्थ - सिद्ध योगियों के निर्देशन में योगाभ्यास करने से जिज्ञासुओं का जीवन निष्कलङ्क हो जाता है और वे प्राणसिद्धियों तथा इच्छासिद्धियों को शीघ्र ही प्राप्त कर लेते हैं ॥१॥
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