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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1540
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
वृ꣡ष꣢णं त्वा व꣣यं꣡ वृ꣢ष꣣न्वृ꣡ष꣢णः꣣ स꣡मि꣢धीमहि । अ꣢ग्ने꣣ दी꣡द्य꣢तं बृ꣣ह꣢त् ॥१५४०॥
स्वर सहित पद पाठवृ꣡ष꣢꣯णम् । त्वा꣣ । वय꣢म् । वृ꣣षन् । वृ꣡ष꣢꣯णः । सम् । इ꣣धीमहि । अ꣡ग्ने꣢꣯ । दी꣡द्य꣢꣯तम् । बृ꣣ह꣢त् ॥१५४०॥
स्वर रहित मन्त्र
वृषणं त्वा वयं वृषन्वृषणः समिधीमहि । अग्ने दीद्यतं बृहत् ॥१५४०॥
स्वर रहित पद पाठ
वृषणम् । त्वा । वयम् । वृषन् । वृषणः । सम् । इधीमहि । अग्ने । दीद्यतम् । बृहत् ॥१५४०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1540
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - आगे फिर परमात्मा का विषय है।
पदार्थ -
हे (वृषन्) मनोरथों को पूर्ण करनेवाले (अग्ने) जगन्नायक परमेश्वर ! (वृषणः) भक्तिरस बरसानेवाले (वयम्) हम उपासक (वृषणम्) आनन्द-रस के वर्षक, (बृहत् दीद्यतम्) बहुत देदीप्यमान (त्वा) आपको (समिधीमहि) अपने अन्दर प्रदीप्त करते हैं ॥३॥
भावार्थ - जो परमात्मा को भक्तिरस से भिगोता है, उसे वह आनन्द-रस से भिगो देता है ॥३॥
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