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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1549
ऋषिः - उशना काव्यः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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क꣡या꣢ ते अग्ने अङ्गिर꣣ ऊ꣡र्जो꣢ नपा꣣दु꣡प꣢स्तुतिम् । व꣡रा꣢य देव म꣣न्य꣡वे꣢ ॥१५४९॥

स्वर सहित पद पाठ

क꣡या꣢꣯ । ते꣣ । अग्ने । अङ्गिरः । ऊ꣡र्जः꣢꣯ । न꣣पात् । उ꣡पस्तु꣢꣯तिम् । उ꣡प꣢꣯ । स्तु꣣तिम् । व꣡रा꣢꣯य । देव । मन्य꣡वे꣢ ॥१५४९॥


स्वर रहित मन्त्र

कया ते अग्ने अङ्गिर ऊर्जो नपादुपस्तुतिम् । वराय देव मन्यवे ॥१५४९॥


स्वर रहित पद पाठ

कया । ते । अग्ने । अङ्गिरः । ऊर्जः । नपात् । उपस्तुतिम् । उप । स्तुतिम् । वराय । देव । मन्यवे ॥१५४९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1549
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
हे (अङ्गिरः) प्राणप्रिय, (ऊर्जः नपात्) बल और प्राणशक्ति को न गिरने देनेवाले, (देव) प्रकाशक (अग्ने) जगन्नायक परमेश्वर! (वराय) वरणीय, श्रेष्ठ (मन्यवे) मनन करने योग्य वा तेजस्वी (ते) आपके लिए (कया) किस रीति से, हम (उपस्तुतिम्) स्तोत्र को करें ? यह प्रश्न है। इसका उत्तर है कि वेदोक्त रीति से ही स्तुति करनी चाहिए ॥१॥

भावार्थ - सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान्, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र, सृष्टिकर्त्ता परमेश्वर की स्तुति वैदिक पद्धति से ही करनी चाहिए, न कि साकार मूर्तिपूजा के प्रकार से ॥१॥

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