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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1551
ऋषिः - उशना काव्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
अ꣡धा꣣ त्वं꣢꣫ हि न꣣स्क꣢रो꣣ वि꣡श्वा꣢ अ꣣स्म꣡भ्य꣢ꣳ सुक्षि꣣तीः꣢ । वा꣡ज꣢द्रविणसो꣣ गि꣡रः꣢ ॥१५५१॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡ध꣢꣯ । त्वम् । हि । नः꣣ । क꣡रः꣢꣯ । वि꣡श्वाः꣢꣯ । अ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । सु꣣क्षितीः꣢ । सु꣣ । क्षितीः꣢ । वा꣡ज꣢꣯द्रविणसः । वा꣡ज꣢꣯ । द्र꣣विणसः । गि꣡रः꣢꣯ ॥१५५१॥
स्वर रहित मन्त्र
अधा त्वं हि नस्करो विश्वा अस्मभ्यꣳ सुक्षितीः । वाजद्रविणसो गिरः ॥१५५१॥
स्वर रहित पद पाठ
अध । त्वम् । हि । नः । करः । विश्वाः । अस्मभ्यम् । सुक्षितीः । सु । क्षितीः । वाजद्रविणसः । वाज । द्रविणसः । गिरः ॥१५५१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1551
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना है।
पदार्थ -
हे अग्ने ! हे विश्वनायक जगदीश ! (अध) अब (त्वं हि) आप (नः) हमारी (विश्वाः गिरः) सब वाणियों को (अस्मभ्यम्) हमारे लिए (सुक्षितीः) उत्तम निवास देनेवाली और (वाजद्रविणसः) बल रूप धन से युक्त अर्थात् बलवती (करः) कर दो ॥३॥
भावार्थ - श्रद्धा के साथ परमात्मा की उपासना करने से ऐसा वाणी का बल पाया जा सकता है, जो श्रोताओं के मन पर प्रभाव उत्पन्न करे ॥३॥
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