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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1581
ऋषिः - भर्गः प्रागाथः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम -
4
त्व꣢꣫ꣳ ह्येहि꣣ चे꣡र꣢वे वि꣣दा꣢꣫ भगं꣣ व꣡सु꣢त्तये । उ꣡द्वा꣢वृषस्व मघव꣣न् ग꣡वि꣢ष्टय꣣ उ꣢दि꣣न्द्रा꣡श्व꣢मिष्टये ॥१५८१॥
स्वर सहित पद पाठत्व꣢म् । हि । आ । इ꣣हि । चे꣡र꣢꣯वे । वि꣣दाः꣢ । भ꣡ग꣢꣯म् । व꣡सु꣢꣯त्तये । उत् । वा꣢वृषस्व । मघवन् । ग꣡वि꣢꣯ष्टये । गो । इ꣣ष्टये । उ꣢त् । इ꣣न्द्र । अ꣡श्व꣢꣯मिष्टये । अ꣡श्व꣢꣯म् । इ꣣ष्टये ॥१५८१॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वꣳ ह्येहि चेरवे विदा भगं वसुत्तये । उद्वावृषस्व मघवन् गविष्टय उदिन्द्राश्वमिष्टये ॥१५८१॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । हि । आ । इहि । चेरवे । विदाः । भगम् । वसुत्तये । उत् । वावृषस्व । मघवन् । गविष्टये । गो । इष्टये । उत् । इन्द्र । अश्वमिष्टये । अश्वम् । इष्टये ॥१५८१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1581
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में २४० क्रमाङ्क पर परमेश्वर और राजा को सम्बोधित की गयी थी। यहाँ योग-साधना में संलग्न कोई साधक परमात्मा से प्रार्थना करता है।
पदार्थ -
हे (इन्द्र) परमैश्वर्यशालिन् परमात्मन् ! (त्वं हि) आप (चेरवे) मुझ योगाभ्यासी के लिए (एहि) आओ। (वसुत्तये) योग के ऐश्वर्य का दान करने के इच्छुक मेरे लिए (भगम्) योग का ऐश्वर्य (विदाः) प्राप्त कराओ। हे (मघवन्) दानी ! आप (गविष्टये) अध्यात्मप्रकाश की किरणों के इच्छुक मेरे ऊपर (उद् वावृषस्व) अध्यात्मप्रकाश की किरणों को सींच दो। (अश्वमिष्टये) प्राणों के इच्छुक मेरे ऊपर (उद् वावृषस्व) प्राण-बल की वर्षा कर दो ॥१॥
भावार्थ - परमेश्वर के प्रति ध्यान से योगाभ्यासी मनुष्य प्राणों को ऊपर चढ़ाता हुआ तरह-तरह के अध्यात्मप्रकाशों को और विविध योग-सिद्धियों को पा सकता है ॥१॥
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