Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1603
ऋषिः - हर्यतः प्रागाथः
देवता - अग्निर्हवींषि वा
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
अ꣣भ्या꣢र꣣मि꣡दद्र꣢꣯यो꣣ नि꣡षि꣢क्तं꣣ पु꣡ष्क꣢रे꣣ म꣡धु꣢ । अ꣣व꣡ट꣢स्य वि꣣स꣡र्ज꣢ने ॥१६०३॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣भ्या꣡र꣢म् । अ꣣भि । आ꣡र꣢꣯म् । इत् । अ꣡द्र꣢꣯यः । अ । द्र꣣यः । नि꣡षि꣢꣯क्तम् । नि । सि꣣क्तम् । पु꣡ष्क꣢꣯रे । म꣡धु꣢꣯ । अ꣣वट꣡स्य꣢ । वि꣣स꣡र्ज꣢ने । वि꣣ । स꣡र्ज꣢꣯ने ॥१६०३॥
स्वर रहित मन्त्र
अभ्यारमिदद्रयो निषिक्तं पुष्करे मधु । अवटस्य विसर्जने ॥१६०३॥
स्वर रहित पद पाठ
अभ्यारम् । अभि । आरम् । इत् । अद्रयः । अ । द्रयः । निषिक्तम् । नि । सिक्तम् । पुष्करे । मधु । अवटस्य । विसर्जने । वि । सर्जने ॥१६०३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1603
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 3; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 3; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
Acknowledgment
विषय - अगले मन्त्र में वर्षा-वर्णन द्वारा परमात्मा की महिमा दर्शाते हैं।
पदार्थ -
अग्नि नामक परमात्मा की ही महिमा से (अद्रयः) बादल(अभ्यारम् इत्) आपस में टकराते हैं। तब (अवटस्य) मेघरूप जलभण्डार के (विसर्जने) बरसने पर (पुष्करे) भूमि के सरोवर में (मधु) मधुर वर्षा-जल (निषिक्तम्) सिंच जाता है ॥२॥
भावार्थ - जो यह भूमि पर स्थित जल सूर्य के ताप से अन्तरिक्ष में जाकर मेघ बनता है और फिर भूमि पर बरस जाता है, वह सब जगदीश्वर का ही कर्तृत्व है ॥२॥
इस भाष्य को एडिट करें