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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1609
ऋषिः - वालखिल्यः (श्रुष्टिगुः काण्वः)
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम -
6
य꣢स्या꣣यं꣢꣫ विश्व꣣ आ꣢र्यो꣣ दा꣡सः꣢ शेवधि꣣पा꣢ अ꣣रिः꣢ । ति꣣र꣡श्चि꣢द꣣र्ये꣢ रु꣣श꣢मे꣣ प꣡वी꣢रवि꣣ तु꣡भ्येत्सो अ꣢꣯ज्यते र꣣यिः꣢ ॥१६०९॥
स्वर सहित पद पाठय꣡स्य꣢꣯ । अ꣣य꣢म् । वि꣡श्वः꣢꣯ । आ꣡र्यः꣢꣯ । दा꣡सः꣢꣯ । शे꣣वधिपाः꣢ । शे꣣वधि । पाः꣢ । अ꣡रिः꣢꣯ । ति꣣रः꣢ । चि꣣त् । अर्ये꣢ । रु꣣श꣡मे꣢ । प꣡वी꣢꣯रवि । तु꣡भ्य꣢꣯ । इत् । सः । अ꣣ज्यते । रयिः꣢ ॥१६०९॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्यायं विश्व आर्यो दासः शेवधिपा अरिः । तिरश्चिदर्ये रुशमे पवीरवि तुभ्येत्सो अज्यते रयिः ॥१६०९॥
स्वर रहित पद पाठ
यस्य । अयम् । विश्वः । आर्यः । दासः । शेवधिपाः । शेवधि । पाः । अरिः । तिरः । चित् । अर्ये । रुशमे । पवीरवि । तुभ्य । इत् । सः । अज्यते । रयिः ॥१६०९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1609
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम मन्त्र में इन्द्र परमेश्वर का वर्णन है।
पदार्थ -
(यस्य) जिस तुझ इन्द्र परमात्मा का (अयम्) यह प्रत्यक्ष दिखाई देता हुआ (विश्वः) सम्पूर्ण संसार है, जो तू (आर्यः)श्रेष्ठ, (दासः) दुष्टों का क्षय करनेवाला, (शेवधिपाः) निधियों का रक्षक और (अरिः) समर्थ है और जो तू (अर्ये) जीवनाधार पवन में, (रुशमे) चमकीले सूर्य में तथा(पवीरवि) बिजली-युक्त बादल में (तिरः चित्) विद्यमान है, ऐसे (तुभ्य इत्) तेरे लिए ही (सः) वह जगत् में सर्वत्र बिखरा हुआ (रयिः) धन (अज्यते) समर्पित है ॥१॥
भावार्थ - विश्व का सम्राट्, श्रेष्ठ, सज्जनों का रक्षक, दुष्टों का दलन करनेवाला, भूगर्भ में निहित निधियों का रक्षक, सब कुछ करने में समर्थ, सर्वान्तर्यामी जो परमेश्वर है, उसी का सब धन है, इस हेतु से ईश्वरापर्ण-बुद्धि से उसका सेवन करना चाहिए ॥१॥
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