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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1619
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
प्रि꣣यो꣡ नो꣢ अस्तु वि꣣श्प꣢ति꣣र्हो꣡ता꣢ म꣣न्द्रो꣡ वरे꣢꣯ण्यः । प्रि꣣याः꣢ स्व꣣ग्न꣡यो꣢ व꣣य꣢म् ॥१६१९॥
स्वर सहित पद पाठप्रि꣣यः꣢ । नः꣣ । अस्तु । विश्प꣡तिः꣢ । हो꣡ता꣢꣯ । म꣣न्द्रः꣢ । व꣡रे꣢꣯ण्यः । प्रि꣣याः꣢ । स्व꣣ग्न꣡यः꣢ । सु꣣ । अ꣡ग्न꣢यः । व꣣य꣢म् ॥१६१९॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रियो नो अस्तु विश्पतिर्होता मन्द्रो वरेण्यः । प्रियाः स्वग्नयो वयम् ॥१६१९॥
स्वर रहित पद पाठ
प्रियः । नः । अस्तु । विश्पतिः । होता । मन्द्रः । वरेण्यः । प्रियाः । स्वग्नयः । सु । अग्नयः । वयम् ॥१६१९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1619
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में उपास्य-उपासक का सम्बन्ध वर्णित है।
पदार्थ -
(विश्वपतिः) प्रजापालक राजा के समान सब मनुष्यों का पालनकर्ता, (होता) देने योग्य वस्तुओं को देनेवाला, (मन्द्रः) आनन्द-प्रदाता, (वरेण्यः) वरणीय जगदीश्वर (नः) हमारा (प्रियः) प्यारा (अस्तु) होवे। (स्वग्नयः) शुभ संकल्प, उत्साह, राष्ट्रियता, वीरता आदि अथवा आहवनीय आदि अग्नियोंवाले (वयम्) हम उपासक जन भी उस जगदीश्वर के (प्रियाः) प्यारे होवें ॥३॥ यहाँ अन्योन्यालङ्कार है ॥३॥
भावार्थ - जब मनुष्य परमात्मा से प्रीति करते हैं तब वह भी उनसे प्रीति करता है ॥३॥
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