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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 164
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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आ꣢꣫ त्वेता꣣ नि꣡ षी꣢द꣣ते꣡न्द्र꣢म꣣भि꣡ प्र गा꣢꣯यत । स꣡खा꣢यः꣣ स्तो꣡म꣢वाहसः ॥१६४॥

स्वर सहित पद पाठ

आ꣢ । तु । आ । इ꣣त । नि꣢ । सी꣣दत । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣भि꣢ । प्र । गा꣣यत । स꣡खा꣢꣯यः । स । खा꣣यः । स्तो꣡म꣢꣯वाहसः । स्तो꣡म꣢꣯ । वा꣣हसः ॥१६४॥


स्वर रहित मन्त्र

आ त्वेता नि षीदतेन्द्रमभि प्र गायत । सखायः स्तोमवाहसः ॥१६४॥


स्वर रहित पद पाठ

आ । तु । आ । इत । नि । सीदत । इन्द्रम् । अभि । प्र । गायत । सखायः । स । खायः । स्तोमवाहसः । स्तोम । वाहसः ॥१६४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 164
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5;
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पदार्थ -
हे (स्तोमवाहसः) उपास्य के प्रति स्तोत्रों को ले जानेवाले अथवा जनता का नेतृत्व करनेवाले (सखायः) मित्रो ! तुम (तु) शीघ्र ही (आ इत) आओ, (आ निषीदत) आकर उपासना के लिए अथवा राष्ट्रोत्थान के लिए बैठो, (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवान्, दुःखविदारक, सुखप्रद परमात्मा को और राष्ट्र को (अभि) लक्ष्य करके (प्र गायत) गीत गाओ ॥१०॥

भावार्थ - सबको उपासनागृह में एकत्र होकर दुःखभंजक, सुखोत्पादक इन्द्र परमेश्वर के प्रति सामगीत गाने चाहिएँ और राष्ट्रोत्थान के लिए कृतसंकल्प होकर तथा कमर कसकर राष्ट्रगीत गाने चाहिएँ ॥१०॥ इस दशति में इन्द्र नाम से परमात्मा के गुणवर्णनपूर्वक उसके प्रति स्तुतिगीत गाने के लिए और उसे भक्तिरस एवं कर्मरस रूप सोम अर्पित करने के लिए प्रेरणा होने से तथा उपासकों द्वारा उसका आह्वान होने से इस दशति के विषय की पूर्व दशति के विषय के साथ सङ्गति जाननी चाहिए ॥१०॥ द्वितीय—प्रपाठक में द्वितीय—अर्ध की द्वितीय—दशति समाप्त ॥ द्वितीय—अध्याय में पञ्चम खण्ड समाप्त ॥

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