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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 165
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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इ꣣द꣡ꣳ ह्यन्वोज꣢꣯सा सु꣣त꣡ꣳ रा꣢धानां पते । पि꣢बा꣣ त्वा꣣३꣱स्य꣡ गि꣢र्वणः ॥१६५॥
स्वर सहित पद पाठइ꣣द꣢म् । हि । अ꣡नु꣢꣯ । ओ꣡ज꣢꣯सा । सु꣣त꣢म् । रा꣣धानाम् । पते । पि꣡ब꣢꣯ । तु । अ꣣स्य꣢ । गि꣢र्वणः । गिः । वनः । ॥१६५॥
स्वर रहित मन्त्र
इदꣳ ह्यन्वोजसा सुतꣳ राधानां पते । पिबा त्वा३स्य गिर्वणः ॥१६५॥
स्वर रहित पद पाठ
इदम् । हि । अनु । ओजसा । सुतम् । राधानाम् । पते । पिब । तु । अस्य । गिर्वणः । गिः । वनः । ॥१६५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 165
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6;
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विषय - प्रथमः—मन्त्र में इन्द्र से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ -
हे (राधानां पते) आध्यात्मिक तथा भौतिक धनों के स्वामी परमात्मन् ! (इदं हि) यह भक्ति और कर्म का सोमरस (ओजसा) सम्पूर्ण बल और वेग के साथ (अनुसुतम्) हमने अनुक्रम से अभिषुत किया है। हे (गिर्वणः) वाणियों द्वारा संभजनीय और याचनीय देव ! आप (तु) शीघ्र ही (अस्य) इस मेरे भक्तिरस को और कर्मरस को (पिब) स्वीकार करें ॥१॥
भावार्थ - हे परमेश्वर ! आप आध्यात्मिक और भौतिक सकल ऋद्धि-सिद्धियों के परम अधिपति हैं। आपके पास किसी वस्तु की कमी नहीं है, तो भी हमारे प्रति प्रेमाधिक्य के कारण ही आप हमारे प्रेमोपहार को स्वीकार करते हैं। हे देव ! आपके लिए हमने सम्पूर्ण बल के साथ भक्तिरस और कर्मरस तैयार किया है। उसे स्वीकार कर हमें अनुगृहीत कीजिए ॥१॥
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