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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1690
ऋषिः - सप्तर्षयः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
5
स꣡ मा꣢मृजे ति꣣रो꣡ अण्वा꣢꣯नि मे꣣꣬ष्यो꣢꣯ मी꣣ढ्वा꣢꣫न्त्सप्ति꣣र्न꣡ वा꣢ज꣣युः꣢ । अ꣣नु꣢माद्यः꣣ प꣡व꣢मानो मनी꣣षि꣢भिः꣣ सो꣢मो꣣ वि꣡प्रे꣢भि꣣रृ꣡क्व꣢भिः ॥१६९०॥
स्वर सहित पद पाठसः꣢ । मा꣣मृजे । तिरः꣢ । अ꣡ण्वा꣢꣯नि । मे꣣ष्यः꣢ । मी꣣ढ्वा꣢न् । स꣡प्तिः꣢꣯ । न । वा꣣जयुः꣢ । अ꣣नुमा꣡द्यः꣢ । अ꣣नु । मा꣡द्यः꣢꣯ । प꣡व꣢꣯मानः । म꣣नीषि꣡भिः꣢ । सो꣡मः꣢꣯ । वि꣡प्रे꣢꣯भिः । वि । प्रे꣣भिः । ऋ꣡क्व꣢꣯भिः ॥१६९०॥
स्वर रहित मन्त्र
स मामृजे तिरो अण्वानि मेष्यो मीढ्वान्त्सप्तिर्न वाजयुः । अनुमाद्यः पवमानो मनीषिभिः सोमो विप्रेभिरृक्वभिः ॥१६९०॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । मामृजे । तिरः । अण्वानि । मेष्यः । मीढ्वान् । सप्तिः । न । वाजयुः । अनुमाद्यः । अनु । माद्यः । पवमानः । मनीषिभिः । सोमः । विप्रेभिः । वि । प्रेभिः । ऋक्वभिः ॥१६९०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1690
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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विषय - आगे फिर जीवात्मा का विषय है।
पदार्थ -
(वाजयुः) अन्न के इच्छुक (सप्तिः न) घोड़े के समान (वाजयुः) बल और विज्ञान का इच्छुक, (मीढ्वान्) अन्यों पर सुख सींचनेवाला, (मेष्यः) ज्ञान का सिञ्चन करनेवाली वेदवाणी के (अण्वानि) सूक्ष्म विज्ञान-तत्त्वों को (तिरः) प्राप्त करके (पवमानः) स्वयं को पवित्र करता हुआ (सः) वह (सोमः) जीवात्मा (मनीषिभिः) मननशील (ऋक्वभिः) वेदज्ञ (विप्रेभिः) विद्वानों के द्वारा (अनुमाद्यः) हर्षित किये जाने योग्य होता हुआ (मामृजे) श्रेष्ठ गुण-कर्मों से अलङ्कृत किया जाता है ॥२॥ यहाँ श्लिष्टोपमा अलङ्कार है ॥२॥
भावार्थ - सब मनुष्यों को चाहिए कि वेद पढ़कर, अपने आत्मा की शक्ति को जान कर, सदाचारी विद्वानों के सङ्ग से अपनी उन्नति निरन्तर किया करें ॥२॥
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