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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1700
ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
प꣡व꣢माना दि꣣व꣢꣫स्पर्य꣣न्त꣡रि꣢क्षादसृक्षत । पृ꣣थिव्या꣢꣫ अधि꣣ सा꣡न꣢वि ॥१७००॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मानाः । दि꣣वः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । अ꣣न्त꣡रि꣢क्षात् । अ꣣सृक्षत । पृथिव्याः꣣ । अ꣡धि꣢꣯ । सा꣡न꣢꣯वि ॥१७००॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमाना दिवस्पर्यन्तरिक्षादसृक्षत । पृथिव्या अधि सानवि ॥१७००॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमानाः । दिवः । परि । अन्तरिक्षात् । असृक्षत । पृथिव्याः । अधि । सानवि ॥१७००॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1700
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में सूर्य-किरणों के उपकार-वर्णन द्वारा भगवान् के उपकारों का वर्णन करते हैं।
पदार्थ -
परमात्मा से रची हुई (पवमानाः) पवित्र करनेवाली सूर्य-रश्मियाँ(दिवः परि) द्युलोक से और (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से(पृथिव्याः) भूमि के (सानवि अधि) उच्च प्रदेशों पर (असृक्षत) सूर्य-ताप और मेघ-जल को बरसाती हैं ॥२॥
भावार्थ - यदि सूर्य न हो तो भूमि पर प्रकाश, ताप, वर्षा, ऋतुओं आदि का निर्माण कुछ भी न हो, सब जगह घोर अँधेरा व्यापा रहे। ऐसा अद्भुत सूर्य परमात्मा ने ही रचा है, इसलिए उसी की वह महिमा है ॥२॥
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