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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 171
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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स꣡द꣢स꣣स्प꣢ति꣣म꣡द्भु꣢तं प्रि꣣य꣡मिन्द्र꣢꣯स्य꣣ का꣡म्य꣢म् । स꣣निं꣢ मे꣣धा꣡म꣢यासिषम् ॥१७१॥

स्वर सहित पद पाठ

स꣡द꣢꣯सः । प꣡ति꣢꣯म् । अ꣡द्भु꣢꣯तम् । अत् । भु꣣तम् । प्रिय꣢म् । इ꣡न्द्र꣢꣯स्य । का꣡म्य꣢꣯म् । स꣣नि꣢म् । मे꣣धा꣢म् । अ꣣यासिषम् ॥१७१॥


स्वर रहित मन्त्र

सदसस्पतिमद्भुतं प्रियमिन्द्रस्य काम्यम् । सनिं मेधामयासिषम् ॥१७१॥


स्वर रहित पद पाठ

सदसः । पतिम् । अद्भुतम् । अत् । भुतम् । प्रियम् । इन्द्रस्य । काम्यम् । सनिम् । मेधाम् । अयासिषम् ॥१७१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 171
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 7
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6;
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पदार्थ -
प्रथम—परमात्मा के पक्ष में। मैं (अद्भुतम्) आश्चर्यमय गुण-कर्म-स्वभाववाले, (इन्द्रस्य) शरीर के अधिष्ठाता जीवात्मा के (प्रियम्) प्रिय, (काम्यम्) उपासकों के स्पृहणीय, (सनिम्) कृत पाप-पुण्य-रूप कर्मों के फलप्रदाता (सदसः पतिम्) हृदयरूप अथवा ब्रह्माण्डरूप यज्ञसदन के स्वामी परमात्मा से (मेधाम्) धारणावती बुद्धि को (अयासिषम्) माँगता हूँ ॥ द्वितीय—सभाध्यक्ष के पक्ष में। मैं (अद्भुतम्) अन्यों की अपेक्षा विशिष्ट गुण-कर्म-स्वभाववाले, इसीलिए (इन्द्रस्य) परमात्मा के (प्रियम्) प्रिय, (काम्यम्) सब प्रजाजनों द्वारा चाहने योग्य, (सनिम्) राष्ट्र में धन का संविभाग करनेवाले, प्रजाओं को सत्कर्मों का पुरस्कार देनेवाले और असत्कर्मों का यथायोग्य दण्ड देनेवाले (सदसः पतिम्) राष्ट्रसभा के अध्यक्ष राजा से (मेधाम्) विद्याप्रचार और धन की (अयासिषम्) याचना करता हूँ ॥ तृतीय—आचार्य के पक्ष में। मैं (अद्भुतम्) ज्ञान-विज्ञान के अद्भुत भण्डार, (इन्द्रस्य) विद्याप्रचारक राजा के (प्रियम्) प्रिय, (काम्यम्) सब विद्यार्थियों द्वारा चाहने योग्य, (सनिम्) विविध विद्याओं और व्रतों के दाता (सदसः पतिम्) विद्यार्थी-कुल के अध्यक्ष आचार्य से (मेधाम्) विद्याबोध की (अयासिषम्) याचना करता हूँ ॥७॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥७॥

भावार्थ - जो मनुष्य अद्भुत गुण-कर्म-स्वभाववाले, अद्भुत ज्ञानविज्ञान की राशि, न्यायकारी, प्रिय परमात्मा, सभाध्यक्ष राजा और आचार्य की शरण में जाते हैं, वे मेधावी, शास्त्रवेत्ता, पुण्यकर्ता और धनवान् होकर सुखी होते हैं ॥७॥

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