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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 186
ऋषिः - वत्सः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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ग꣣व्यो꣢꣫ षु णो꣣ य꣡था꣢ पु꣣रा꣢श्व꣣यो꣡त र꣢꣯थ꣣या꣢ । व꣣रिवस्या꣢ म꣣हो꣡ना꣢म् ॥१८६॥
स्वर सहित पद पाठग꣣व्य꣢ । उ꣣ । सु꣢ । नः꣣ । य꣡था꣢꣯ । पु꣣रा꣢ । अ꣣श्वया꣢ । उ꣣त꣢ । र꣣थया꣢ । व꣣रिवस्या꣢ । म꣣हो꣡ना꣢म् ॥१८६॥
स्वर रहित मन्त्र
गव्यो षु णो यथा पुराश्वयोत रथया । वरिवस्या महोनाम् ॥१८६॥
स्वर रहित पद पाठ
गव्य । उ । सु । नः । यथा । पुरा । अश्वया । उत । रथया । वरिवस्या । महोनाम् ॥१८६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 186
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 8;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 8;
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विषय - अगले मन्त्र में इन्द्र नाम से परमात्मा और राजा से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ -
हे इन्द्र ! परमैश्वर्यशाली परब्रह्म परमात्मन् और राजन् ! आप (गव्या) गायों, भूमियों, वाक्शक्तियों, विद्युद्विद्याओं और अध्यात्मप्रकाश की किरणों को प्रदान करने की इच्छा से (उ सु) और (अश्वया) घोड़ों, प्राण-बलों, अग्नि तथा सूर्य की विद्याओं को प्रदान करने की इच्छा से, (उत) और (रथया) भूमि, जल व अन्तरिक्ष में चलनेवाले यानों एवं मानव-देह-रूप रथों को प्रदान करने की इच्छा से, तथा (महोनाम्) हम महानों को (वरिवस्या) धन प्रदान करने की इच्छा से (यथा पुरा) पहले के समान अब भी (नः) हमारे पास आइये ॥२॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥२॥
भावार्थ - परमेश्वर की कृपा से, राजा की सुव्यवस्था से और अपने पुरुषार्थ से मनुष्यों को दुधारू गौएँ, बलवान् घोड़े, तेल-गैस-बिजली-सूर्यताप आदि से चलाये जानेवाले भूमि, जल और अन्तरिक्ष में चलनेवाले यान, वाणी का बल, प्राण-बल, अग्नि-वायु-बिजली एवं सूर्य की विद्याएँ, अध्यात्म-प्रकाश और चक्रवर्ती राज्य प्राप्त करने चाहिएँ ॥२॥
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