Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 245
ऋषिः - मेधातिथि0मेध्यातिथी काण्वौ
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
4
आ꣡ त्वा꣢ स꣣ह꣢स्र꣣मा꣢ श꣣तं꣢ यु꣣क्ता꣡ रथे꣢꣯ हिर꣣ण्य꣡ये꣢ । ब्र꣣ह्म꣢युजो꣣ ह꣡र꣢य इन्द्र के꣣शि꣢नो꣣ व꣡ह꣢न्तु꣣ सो꣡म꣢पीतये ॥२४५॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । त्वा꣣ । सह꣡स्र꣢म् । आ । श꣣त꣢म् । यु꣢क्ताः꣢ । र꣡थे꣢꣯ । हि꣣रण्य꣡ये꣢ । ब्र꣣ह्मयु꣡जः꣢ । ब्र꣣ह्म । यु꣡जः꣢꣯ । ह꣡र꣢꣯यः । इ꣣न्द्र । केशि꣡नः꣢ । व꣡ह꣢꣯न्तु । सो꣡म꣢꣯पीतये । सो꣡म꣢꣯ । पी꣣तये ॥२४५॥
स्वर रहित मन्त्र
आ त्वा सहस्रमा शतं युक्ता रथे हिरण्यये । ब्रह्मयुजो हरय इन्द्र केशिनो वहन्तु सोमपीतये ॥२४५॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । त्वा । सहस्रम् । आ । शतम् । युक्ताः । रथे । हिरण्यये । ब्रह्मयुजः । ब्रह्म । युजः । हरयः । इन्द्र । केशिनः । वहन्तु । सोमपीतये । सोम । पीतये ॥२४५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 245
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2;
Acknowledgment
विषय - अगले मन्त्र में हरियों द्वारा इन्द्र को वहन किये जाने का वर्णन है।
पदार्थ -
प्रथम—अध्यात्म पक्ष में। हे (इन्द्र) परमात्मन् ! (हिरण्यये) सुवर्ण के समान ज्योतिर्मय (रथे) शरीररूप रथ में (युक्ताः) नियुक्त, (ब्रह्मयुजः) ब्रह्म के साथ योग करानेवाले अर्थात् ब्रह्म-साक्षात्कार के साधन-भूत, (केशिनः) प्रकाशमय तथा प्रकाशक (सहस्रम्) सहस्र संख्यावाले (हरयः) आहरणशील सात्त्विक-चित्तवृत्ति-रूप अश्व अथवा प्राणरूप अश्व (सोमपीतये) श्रद्धारूप सोमरस का जिसमें पान किया जाता है, ऐसे उपासना-यज्ञ के लिए (त्वा) तुझे (आवहन्तु) हृदय में लायें, प्रकट करें, (शतम्) सौ संख्यावाले सात्त्विक चित्तवृत्तिरूप अश्व (आ) हृदय में लायें, प्रकट करें ॥ पहले हजार कहकर फिर सौ कहना इस बात का ज्ञापक है कि ब्रह्मसाक्षात्कार के लिए शनैःशनै सात्त्विक चित्तवृत्तियों का भी निरोध करना होता है। इसीप्रकार प्राणायाम में पहले श्वासोच्छ्वासों की संख्या अधिक होती है, क्रमशः अभ्यास करते-करते उनकी संख्या न्यून हो जाती है ॥ द्वितीय—राष्ट्र के पक्ष में। हे (इन्द्र) वीर मनुष्य ! (हिरण्यये) ज्योतिर्मय (रथे) राष्ट्ररूप रथ में (युक्ताः) नियुक्त, (ब्रह्मयुजः) वेदज्ञ चुनाव-अधिकारियों से प्रेरित, (केशिनः) ज्ञान-प्रकाश से युक्त (सहस्रम्) सहस्र (हरयः) मतदान के अधिकारी मनुष्य (सोमपीतये) सुखशान्ति की रक्षा जिसमें होती है, ऐसे राष्ट्र-यज्ञ के सञ्चालनार्थ (त्वा) तुझे (आ वहन्तु) चुनकर राजा के पद पर लायें, (शतम्) सौ चुननेवाले विधायक लोग तुझे चुनकर (आ) राजा के पद पर प्रतिष्ठित करें ॥ पहले हजार या अधिक प्रजाजन मतदान करके कुछ विधायकों को चुनते हैं, फिर वे विधायक जो संख्या में कम होते हैं, राजा को चुनते हैं। यह बात क्रमशः सहस्र और शत शब्दों से सूचित होती है ॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥३॥
भावार्थ - जैसे योगीजन प्रकाशपूर्ण सात्त्विक चित्त की भावनाओं से परमात्मा को प्राप्त करते हैं, वैसे ही विवेकशील प्रजाजनों को चाहिए कि वे मतदान द्वारा सुयोग्य राजा को प्राप्त करें ॥३॥
इस भाष्य को एडिट करें