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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 3
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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अ꣣ग्निं꣢ दू꣣तं꣡ वृ꣢णीमहे꣣ हो꣡ता꣢रं वि꣣श्व꣡वे꣢दसम् । अ꣣स्य꣢ य꣣ज्ञ꣡स्य꣢ सु꣣क्र꣡तु꣢म् ॥३॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣ग्नि꣢म् । दू꣣त꣢म् । वृ꣣णीमहे । हो꣡ता꣢꣯रम् । वि꣣श्व꣡वे꣢दसम् । वि꣣श्व꣢ । वे꣣दसम् । अस्य꣢ । य꣣ज्ञ꣡स्य꣢ । सु꣣क्र꣡तु꣢म् । सु꣣ । क्र꣡तु꣢꣯म् ॥३॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्निं दूतं वृणीमहे होतारं विश्ववेदसम् । अस्य यज्ञस्य सुक्रतुम् ॥३॥


स्वर रहित पद पाठ

अग्निम् । दूतम् । वृणीमहे । होतारम् । विश्ववेदसम् । विश्व । वेदसम् । अस्य । यज्ञस्य । सुक्रतुम् । सु । क्रतुम् ॥३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 3
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
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पदार्थ -
हम (होतारम्) दिव्य गुणों का आह्वान करनेवाले, (विश्ववेदसम्) विश्व के ज्ञाता, विश्व-भर में विद्यमान तथा सब आध्यात्मिक एवं भौतिक धन के स्रोत, (अस्य) इस अनुष्ठान किये जा रहे (यज्ञस्य) अध्यात्म-यज्ञ के (सुक्रतुम्) सुकर्ता, सुसंचालक ऋत्विग्रूप (अग्निम्) परमात्मा को (दूतं वृणीमहे) दिव्य गुणों के अवतरण में दूतरूप से वरते हैं ॥३॥

भावार्थ - जैसे दूतरूप में वरा हुआ कोई जन हमारे सन्देश को प्रियजन के समीप ले जाकर और प्रियजन के सन्देश को हमारे पास पहुँचाकर उसके साथ हमारा मिलन करा देता है, वैसे ही सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, न्याय, विद्या, श्रद्धा, सुमति इत्यादि दिव्य गुणों के और हमारे बीच में दूत बनकर परमात्मा हमारे पास दिव्य गुणों को बुलाकर लाता है, इसलिए सब उपासकों को उसे दूतरूप में वरण करना चाहिए ॥३॥

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