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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 317
ऋषिः - सप्तगुराङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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ज꣣गृह्मा꣢ ते꣣ द꣡क्षि꣢णमिन्द्र꣣ ह꣡स्तं꣢ वसू꣣य꣡वो꣢ वसुपते꣣ व꣡सू꣢नाम् । वि꣣द्मा꣢꣫ हि त्वा꣣ गो꣡प꣢तिꣳ शूर꣣ गो꣡ना꣢म꣣स्म꣡भ्यं꣢ चि꣣त्रं꣡ वृष꣢꣯णꣳ र꣣यिं꣡ दाः꣢ ॥३१७॥

स्वर सहित पद पाठ

ज꣣गृह्म꣢ । ते꣣ । द꣡क्षि꣢꣯णम् । इ꣣न्द्र । ह꣡स्त꣢꣯म् । व꣣सूय꣡वः꣢ । व꣣सुपते । वसु । पते । व꣡सू꣢꣯नाम् । वि꣣द्म꣢ । हि । त्वा꣣ । गो꣡प꣢꣯तिम् । गो । प꣣तिम् । शूर । गो꣡ना꣢꣯म् । अ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । चि꣣त्र꣢म् । वृ꣡ष꣢꣯णम् । र꣣यि꣢म् । दाः꣣ ॥३१७॥


स्वर रहित मन्त्र

जगृह्मा ते दक्षिणमिन्द्र हस्तं वसूयवो वसुपते वसूनाम् । विद्मा हि त्वा गोपतिꣳ शूर गोनामस्मभ्यं चित्रं वृषणꣳ रयिं दाः ॥३१७॥


स्वर रहित पद पाठ

जगृह्म । ते । दक्षिणम् । इन्द्र । हस्तम् । वसूयवः । वसुपते । वसु । पते । वसूनाम् । विद्म । हि । त्वा । गोपतिम् । गो । पतिम् । शूर । गोनाम् । अस्मभ्यम् । चित्रम् । वृषणम् । रयिम् । दाः ॥३१७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 317
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 9;
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पदार्थ -
हे (वसूनां वसुपते) समस्त भौतिक एवं आध्यात्मिक ऐश्वर्यों के अधिपति (इन्द्र) परमात्मन्, राजन् और आचार्य ! (वसूयवः) धन, धान्य, राज्य, विद्या, शम, दम, वैराग्य आदि ऐश्वर्यों की कामनावाले हम (ते) आपके (दक्षिणं हस्तम्) दाहिने हाथ को अर्थात् आपकी शरण को (जगृह्म) पकड़ रहे हैं। हे (शूर) दानवीर परमात्मन् राजन् और आचार्य ! हम (त्वा) आपको (गोनां गोपतिम्) समस्त वाणी, इन्द्रिय, गाय, भूमि आदियों का स्वामी (विद्म) जानते हैं। आप (अस्मभ्यम्) हमें (चित्रम्) गुण आदि में अद्भुत (वृषणम्) व्यक्ति, समाज, राष्ट्र वा जगत् में सुख की वर्षा करनेवाला (रयिम्) ऐश्वर्य (दाः) प्रदान कीजिए ॥५॥ इस मन्त्र में अर्थश्लेष अलङ्कार है ॥५॥

भावार्थ - परमात्मा, राजा और आचार्य यथायोग्य अनेक प्रकार के धन, धान्य, विद्या, आरोग्य, सत्य, अहिंसा, शम, दम, योगसिद्धि, चक्रवर्ती राज्य, मोक्ष आदि ऐश्वर्यों के स्वामी हैं। उनकी शरण में जाकर हम भी इन ऐश्वर्यों को प्राप्त करें ॥५॥

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