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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 365
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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स꣢ घा꣣ य꣡स्ते꣢ दि꣣वो꣡ नरो꣢꣯ धि꣣या꣡ मर्त꣢꣯स्य꣣ श꣡म꣢तः । ऊ꣣ती꣡ स बृ꣢꣯ह꣣तो꣢ दि꣣वो꣢ द्वि꣣षो꣢꣫ अꣳहो꣣ न꣡ त꣢रति ॥३६५॥
स्वर सहित पद पाठसः꣢ । घ꣣ । यः꣢ । ते꣣ । दिवः꣢ । न꣡रः꣢꣯ । धि꣣या꣢ । म꣡र्त꣢꣯स्य । श꣡म꣢꣯तः । ऊ꣣ती꣢ । सः । बृ꣣हतः꣢ । दि꣣वः꣢ । द्वि꣣षः꣢ । अँ꣡हः꣢꣯ । न । त꣣रति ॥३६५॥
स्वर रहित मन्त्र
स घा यस्ते दिवो नरो धिया मर्तस्य शमतः । ऊती स बृहतो दिवो द्विषो अꣳहो न तरति ॥३६५॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । घ । यः । ते । दिवः । नरः । धिया । मर्तस्य । शमतः । ऊती । सः । बृहतः । दिवः । द्विषः । अँहः । न । तरति ॥३६५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 365
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 2;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 2;
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विषय - अगले मन्त्र में यह विषय है कि परमेश्वर के ध्यान से क्या फल होता है।
पदार्थ -
हे परम धीमान् इन्द्र परमेश्वर ! (यः नरः) जो मनुष्य (मर्तस्य) मारनेवाले, (शमतः) लौकिक शान्ति को तथा मोक्षरूप परमशान्ति को देनेवाले, (दिवः) कमनीय (ते) आपके (धिया) ध्यान में मग्न होता है, (सः) वह, (सः घ) निश्चय से वही, (बृहतः) महान्, (दिवः) ज्योतिर्मय आपकी (ऊती) रक्षा से (अंहः न) पाप के समान (द्विषः) द्वेषवृत्तियों को भी (तरति) पार कर लेता है ॥६॥
भावार्थ - जैसे मनुष्य मरणधर्मा होने से ‘मर्त्त’ कहलाता है, वैसे ही जगदीश्वर मारनेवाला होने से ‘मर्त्त’ है। वेद में कहा भी है—‘जो मारता है, जो जिलाता है (अथ० १३।३।३)’। मारनेवाला होने से उसके नाम मर्त्त, मृत्यु, शर्व और यम हैं, जन्म देने और प्राण प्रदान करने के कारण वह भव, जनिता, प्राण आदि कहाता है। उसके ध्यान से बल पाकर मनुष्य सब विघ्नों और समस्त शत्रुओं को पार कर सकता है ॥६॥
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