Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 432
ऋषिः - ऋण0त्रसदस्यू देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिपदा अनुष्टुप्पिपीलिकामध्या स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
5

अ꣢नु꣣ हि꣡ त्वा꣢ सु꣣त꣡ꣳ सो꣢म꣣ म꣡दा꣢मसि म꣣हे꣡ स꣢मर्य꣣रा꣡ज्ये꣢ । वा꣡जा꣢ꣳ अ꣣भि꣡ प꣢वमान꣣ प्र꣡ गा꣢हसे ॥४३२॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡नु꣢꣯ । हि । त्वा꣣ । सुत꣢म् । सो꣣म । म꣡दा꣢꣯मसि । म꣣हे꣢ । स꣣मर्यरा꣡ज्ये꣢ । स꣣मर्य । रा꣡ज्ये꣢꣯ । वा꣡जा꣢꣯न् । अ꣣भि꣢ । प꣣वमान । प्र꣢ । गा꣣हसे ॥४३२॥


स्वर रहित मन्त्र

अनु हि त्वा सुतꣳ सोम मदामसि महे समर्यराज्ये । वाजाꣳ अभि पवमान प्र गाहसे ॥४३२॥


स्वर रहित पद पाठ

अनु । हि । त्वा । सुतम् । सोम । मदामसि । महे । समर्यराज्ये । समर्य । राज्ये । वाजान् । अभि । पवमान । प्र । गाहसे ॥४३२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 432
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 9;
Acknowledgment

पदार्थ -
हे (सोम) परमात्मन्, जीवात्मन् वा राजन् ! (सुतम्) अभिषिक्त किये हुए (त्वा) तुम्हारा (अनु) अनुगमन करके, हम (महे) महान् (समर्यराज्ये) देवासुरसंग्राम में कुशल दिव्य भावों व वीर क्षत्रियों के राज्य में (मदामसि हि) निश्चय ही आनन्द लाभ करते हैं। हे (पवमान) पवित्रकर्ता देव ! तुम (वाजान् अभि) हमें बल, विज्ञान वा ऐश्वर्य प्राप्त कराने के लिए (प्र गाहसे) प्रकृष्ट रूप से आलोडित करते हो अर्थात् आलोडित करके क्रियाशील बना देते हो ॥६॥ इस मन्त्र में अर्थश्लेष अलङ्कार है ॥६॥

भावार्थ - परमात्मा, जीवात्मा और वीर मनुष्य को राजा के पद पर अभिषिक्त करके संग्राम-कुशल वीरभावों व वीरजनों के राज्य में निवास करते हुए हम देवासुरसंग्राम में विजय और उत्कर्ष पायें ॥६॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top