Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 47
ऋषिः - सौभरि: काण्व:
देवता - अग्निः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
32
अ꣡द꣢र्शि गातु꣣वि꣡त्त꣢मो꣣ य꣡स्मि꣢न्व्र꣣ता꣡न्या꣢द꣣धुः꣢ । उ꣢पो꣣ षु꣢ जा꣣त꣡मार्य꣢꣯स्य व꣡र्ध꣢नम꣣ग्निं꣡ न꣢क्षन्तु नो꣣ गि꣡रः꣢ ॥४७॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡द꣢꣯र्शि । गा꣣तुवि꣡त्त꣢मः । गा꣣तु । वि꣡त्त꣢꣯मः । य꣡स्मि꣢꣯न् । व्र꣣ता꣡नि꣢ । आ꣣दधुः꣢ । आ꣣ । दधुः꣢ । उ꣡प꣢꣯ । उ꣣ । सु꣢ । जा꣣त꣢म् । आ꣡र्य꣢꣯स्य । व꣡र्ध꣢꣯नम् । अ꣣ग्नि꣢म् । न꣣क्षन्तु । नः । गि꣡रः꣢꣯ ॥४७॥
स्वर रहित मन्त्र
अदर्शि गातुवित्तमो यस्मिन्व्रतान्यादधुः । उपो षु जातमार्यस्य वर्धनमग्निं नक्षन्तु नो गिरः ॥४७॥
स्वर रहित पद पाठ
अदर्शि । गातुवित्तमः । गातु । वित्तमः । यस्मिन् । व्रतानि । आदधुः । आ । दधुः । उप । उ । सु । जातम् । आर्यस्य । वर्धनम् । अग्निम् । नक्षन्तु । नः । गिरः ॥४७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 47
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 5;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 5;
Acknowledgment
विषय - परमेश्वर की हमें स्तुति-वाणियों से पूजा करनी चाहिए, यह कहते हैं।
पदार्थ -
(गातुवित्तमः) सबसे बढ़कर कर्तव्य-मार्ग का प्रदर्शक वह अग्रणी परमेश्वर (अदर्शि) हमारे द्वारा साक्षात् कर लिया गया है, (यस्मिन्) जिस परमेश्वर में, मुमुक्षुजन (व्रतानि) अपने-अपने कर्मों को (आदधुः) समर्पित करते हैं अर्थात् ईश्वरार्पण-बुद्धि से निष्काम कर्म करते हैं। (उ) और (सुजातम्) भली-भाँति हृदय में प्रकट हुए, (आर्यस्य) धार्मिक गुण-कर्म-स्वभाववाले, ईश्वर-पुत्र आर्यजन के (वर्द्धनम्) बढ़ानेवाले (अग्निम्) ज्योतिर्मय, नायक परमेश्वर को (नः) हमारी (गिरः) स्तुति-वाणियाँ (उप-नक्षन्तु) समीपता से प्राप्त करें ॥३॥
भावार्थ - मोक्षार्थी मनुष्य फल की इच्छा का परित्याग करके परमेश्वर में अपने समस्त कर्म समर्पित कर देते हैं और परमेश्वर सदैव प्रज्वलित दीपक के समान उनके मन में कर्तव्याकर्तव्य का विवेक पैदा करता है। सब आर्य गुण-कर्म-स्वभाववालों के उन्नायक उसकी स्तुति से हमें अपने हृदय को पवित्र करना चाहिए ॥३॥
इस भाष्य को एडिट करें