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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 531
ऋषिः - उशना काव्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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ए꣣ष꣢꣫ स्य ते꣣ म꣡धु꣢माꣳ इन्द्र꣣ सो꣢मो꣣ वृ꣢षा꣣ वृ꣢ष्णः꣣ प꣡रि꣢ प꣣वि꣡त्रे꣢ अक्षाः । स꣣हस्रदाः꣡ श꣢त꣣दा꣡ भू꣢रि꣣दा꣡वा꣢ शश्वत्त꣣मं꣢ ब꣣र्हि꣢꣫रा वा꣣꣬ज्य꣢꣯स्थात् ॥५३१॥

स्वर सहित पद पाठ

ए꣣षः꣢ । स्यः । ते꣣ । म꣡धु꣢꣯मान् । इ꣣न्द्र । सो꣡मः꣢꣯ । वृ꣡षा꣢꣯ । वृ꣡ष्णः꣢꣯ । प꣡रि꣢꣯ । प꣣वि꣡त्रे꣢ । अ꣣क्षारि꣡ति꣢ । स꣣हस्रदाः꣢ । स꣣हस्र । दाः꣢ । श꣣तदाः꣢ । श꣣त । दाः꣢ । भू꣣रिदा꣡वा꣢ । भू꣣रि । दा꣡वा꣢꣯ । श꣣श्वत्तम꣢म् । ब꣣र्हिः꣢ । आ । वा꣣जी꣢ । अ꣣स्थात् ॥५३१॥


स्वर रहित मन्त्र

एष स्य ते मधुमाꣳ इन्द्र सोमो वृषा वृष्णः परि पवित्रे अक्षाः । सहस्रदाः शतदा भूरिदावा शश्वत्तमं बर्हिरा वाज्यस्थात् ॥५३१॥


स्वर रहित पद पाठ

एषः । स्यः । ते । मधुमान् । इन्द्र । सोमः । वृषा । वृष्णः । परि । पवित्रे । अक्षारिति । सहस्रदाः । सहस्र । दाः । शतदाः । शत । दाः । भूरिदावा । भूरि । दावा । शश्वत्तमम् । बर्हिः । आ । वाजी । अस्थात् ॥५३१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 531
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 6;
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पदार्थ -
हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवान् परमात्मन् ! (वृष्णः ते) तुझ वर्षक का (एषः) यह (स्यः) वह प्रसिद्ध, (वृषा) शक्तिवर्षक, (मधुमान्) मधुर (सोमः) आनन्दरस (पवित्रे) मेरे पवित्र हृदयरूप द्रोणकलश में (परि अक्षाः) झर रहा है। (सहस्रदाः) सहस्र गुणों का प्रदाता, (शतदाः) शत बलों का प्रदाता, (भूरिदावा) बहुत से लाभों को देनेवाला, (वाजी) वेगवान् आनन्दरस-रूप सोम (शश्वत्तमम्) सनातन (बर्हिः) आत्मा रूप दर्भपात्र में (आ अस्थात्) आकर स्थित हो गया है ॥९॥ इस मन्त्र में ‘तुझ वृषा का रस भी वृषा है’, इस प्रकार योग्य समागम की सूचना होने से समालङ्कार ध्वनित होता है। ‘वृषा, वृष्’ में छेकानुप्रास है। ‘दा’ की तीन बार आवृत्ति में वृत्त्यनुप्रास है ॥९॥

भावार्थ - जैसे मधुर रस से भरा सोम पवित्र द्रोणकलश में क्षरित होता है, वैसे ही परमेश्वर का मधुर आनन्दरस हृदय-रूप द्रोणकलश में झरता है। जैसे सोमरस बहुशक्तिप्रद होता है, वैसे ही आनन्दरस भी ॥९॥

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