Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 574
ऋषिः - पर्वतनारदौ काण्वौ देवता - पवमानः सोमः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
7

गो꣡म꣢न्न इन्दो꣣ अ꣡श्व꣢वत्सु꣣तः꣡ सु꣢दक्ष धनिव । शु꣡चिं꣢ च꣣ व꣢र्ण꣣म꣢धि꣣ गो꣡षु꣢ धारय ॥५७४॥

स्वर सहित पद पाठ

गो꣡म꣢꣯त् । नः꣣ । इन्दो । अ꣡श्व꣢꣯वत् । सु꣣तः꣢ । सु꣣दक्ष । सु । दक्ष । धनिव । शु꣡चि꣢꣯म् । च꣣ । व꣡र्ण꣢꣯म् । अ꣡धि꣢꣯ । गो꣡षु꣢꣯ । धा꣣रय ॥५७४॥


स्वर रहित मन्त्र

गोमन्न इन्दो अश्ववत्सुतः सुदक्ष धनिव । शुचिं च वर्णमधि गोषु धारय ॥५७४॥


स्वर रहित पद पाठ

गोमत् । नः । इन्दो । अश्ववत् । सुतः । सुदक्ष । सु । दक्ष । धनिव । शुचिम् । च । वर्णम् । अधि । गोषु । धारय ॥५७४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 574
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 10;
Acknowledgment

पदार्थ -
हे (सुदक्ष) अत्यन्त समृद्ध और (इन्दो) जैसे चन्द्रमा समुद्रों की वृद्धि करता है, वैसे ही मनुष्यों की समृद्धि करनेवाले परमात्मन्, राजन् वा आचार्य ! (सुतः) हृदय में प्रकट हुए, राष्ट्र में निर्वाचित हुए अथवा हम समित्पाणि शिष्यों से वरण किये गये आप (नः) हमारे लिए (गोमत्) गायों से अथवा भूमियों से अथवा वेदवाणियों से युक्त और (अश्ववत्) घोड़ों अथवा प्राणों से युक्त ऐश्वर्य को (धनिव) प्राप्त कराइये और (गोषु अधि) राष्ट्र-भूमियों में (शुचिं वर्णं च) पवित्र हृदयवाले ब्राह्मणादि वर्ण को भी, अथवा (गोषु अधि) वाणियों में (शुचिं वर्णं च) पवित्र अक्षर ‘ओम्’ को भी (धारय) धारण कराइये ॥९॥ इस मन्त्र में श्लेष अलङ्कार है ॥९॥

भावार्थ - परमेश्वर, राजा और आचार्य स्वयं धन, विद्या आदि से सुसमृद्ध होकर कृपापूर्वक हमें भी धन, विद्या आदि प्रदान करें। जिस राष्ट्र में पवित्र हृदयवाले ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि वर्ण होते हैं और जहाँ प्रजाओं की वाणियों में ओंकाररूप अक्षर जप आदि रूप में निरन्तर विराजमान रहता है, वह राष्ट्र धन्य कहाता है ॥९॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top