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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 600
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - वायुः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
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नि꣣यु꣡त्वा꣢꣯न्वाय꣣वा꣡ ग꣢ह्य꣣य꣢ꣳ शु꣣क्रो꣡ अ꣢यामि ते । ग꣡न्ता꣢सि सुन्व꣣तो꣢ गृ꣣ह꣢म् ॥६००॥

स्वर सहित पद पाठ

नि꣣यु꣡त्वा꣢न् । नि꣣ । यु꣡त्वा꣢꣯न् । वा꣣यो । आ꣢ । ग꣣हि । अय꣢म् । शु꣣क्रः꣢ । अ꣣यामि । ते । ग꣡न्ता꣢꣯ । अ꣣सि । सुन्वतः꣢ । गृ꣣ह꣢म् ॥६००॥


स्वर रहित मन्त्र

नियुत्वान्वायवा गह्ययꣳ शुक्रो अयामि ते । गन्तासि सुन्वतो गृहम् ॥६००॥


स्वर रहित पद पाठ

नियुत्वान् । नि । युत्वान् । वायो । आ । गहि । अयम् । शुक्रः । अयामि । ते । गन्ता । असि । सुन्वतः । गृहम् ॥६००॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 600
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 2; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 2;
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पदार्थ -
हे (वायो) वायु के सदृश अनन्त बलवाले, सबको शुद्ध करनेवाले, सबके जीवनाधार, प्राणप्रिय परमात्मन् ! (नियुत्वान्) नियन्त्रण और नियोजन के सामर्थ्यवाले आप (आ गहि) मुझे नियन्त्रण में रखने तथा सत्कर्मों में नियुक्त करने के लिए आइए। (अयम्) यह (शुक्रः) पवित्र तथा प्रदीप्त ज्ञान, कर्म और भक्ति का सोमरस (ते) आपके लिए (अयामि) मेरे द्वारा अर्पित है। आप (सुन्वतः) ज्ञान, कर्म और भक्ति का यज्ञ करनेवाले यजमान के (गृहम्) हृदय-रूप गृह में (गन्ता) पहुँचनेवाले (असि) हो ॥६॥

भावार्थ - ज्ञानयज्ञ, कर्मयज्ञ और भक्तियज्ञ सम्मिलित होकर ही परमात्मा की कृपा प्राप्त कराते हैं ॥६॥

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