Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 637
ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः
देवता - सूर्यः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
5
ये꣡ना꣢ पावक꣣ च꣡क्ष꣢सा भु꣣रण्य꣢न्तं꣣ ज꣢ना꣣ꣳ अ꣡नु꣢ । त्वं꣡ व꣢रुण꣣ प꣡श्य꣢सि ॥६३७॥
स्वर सहित पद पाठये꣡न꣢꣯ । पा꣣वक । च꣡क्ष꣢꣯सा । भु꣣रण्य꣡न्त꣢म् । ज꣡ना꣢꣯न् । अ꣡नु꣢꣯ । त्वम् । व꣣रुण । प꣡श्य꣢꣯सि ॥६३७॥
स्वर रहित मन्त्र
येना पावक चक्षसा भुरण्यन्तं जनाꣳ अनु । त्वं वरुण पश्यसि ॥६३७॥
स्वर रहित पद पाठ
येन । पावक । चक्षसा । भुरण्यन्तम् । जनान् । अनु । त्वम् । वरुण । पश्यसि ॥६३७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 637
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 5; मन्त्र » 11
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 5;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 5; मन्त्र » 11
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 5;
Acknowledgment
विषय - अगले मन्त्र में पुनः सूर्य और परमात्मा का वर्णन है।
पदार्थ -
हे (पावक) हृदयों को पवित्र करनेवाले (वरुण) पापनिवारक, मुमुक्षुओं से वरणीय, सर्वश्रेष्ठ सूर्यसदृश परमात्मन् ! आप (भुरण्यन्तम्) शीघ्र पुरुषार्थ करनेवाले जीवात्मा को तथा (जनान्) उपासक जनों को (येन) जिस अद्भुत (चक्षसा) ज्ञान से (अनु) अनुगृहीत करते हो, उस ज्ञान से (त्वम्) आप (पश्यसि) स्वयं भी सब कुछ प्राणियों के शुभाशुभ कर्म आदि को जानते हो ॥ भौतिक सूर्य भी (पावकः) शोधक और (वरुणः) रोगादि का निवारक होता है, तथा वह (जनान्) उत्पन्न प्राणियों को (भुरण्यन्तम्) धारण करनेवाले भूमण्डल को (येन) जिस (चक्षसा) प्रकाश से (अनु) अनुगृहीत करता है, उससे वह (पश्यति) स्वयं भी प्रकाशमान है ॥११॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥११॥
भावार्थ - जैसे प्रकाशमान सूर्य अन्यों को प्रकाशित करता है, वैसे ही ज्ञानवान् परमेश्वर अन्यों को ज्ञान देता है ॥११॥
इस भाष्य को एडिट करें