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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 694
ऋषिः - अग्निश्चाक्षुषः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम -
5
इ꣢न्द्र꣣म꣡च्छ꣢ सु꣣ता꣢ इ꣣मे꣡ वृष꣢꣯णं यन्तु꣣ ह꣡र꣢यः । श्रु꣣ष्टे꣢ जा꣣ता꣢स꣣ इ꣡न्द꣢वः स्व꣣र्वि꣡दः꣢ ॥६९४॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣡च्छ꣢꣯ । सु꣣ताः꣢ । इ꣣मे꣢ । वृ꣡ष꣢꣯णम् । य꣡न्तु । ह꣡र꣢꣯यः । श्रु꣣ष्टे꣢ । जा꣣ता꣡सः꣢ । इ꣡न्द꣢꣯वः । स्व꣣र्वि꣡दः꣢ । स्वः꣣ । वि꣡दः꣢꣯ ॥६९४॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रमच्छ सुता इमे वृषणं यन्तु हरयः । श्रुष्टे जातास इन्दवः स्वर्विदः ॥६९४॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्रम् । अच्छ । सुताः । इमे । वृषणम् । यन्तु । हरयः । श्रुष्टे । जातासः । इन्दवः । स्वर्विदः । स्वः । विदः ॥६९४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 694
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की पूर्वार्चिक में ५६६ क्रमाङ्क पर ब्रह्मानन्दरस के विषय में व्याख्या की जा चुकी है। यहाँ ज्ञानकर्मोपासनारस का विषय वर्णित है।
पदार्थ -
(सुताः) आचार्य द्वारा प्रेरित (इमे) ये (हरयः) ज्ञान-कर्म-उपासनारूप सोमरस (वृषणम्) बलवान् (इन्द्रम्) आत्मा की (अच्छ) ओर (यन्तु) जाएँ। (जातासः) उत्पन्न हुए (इन्दवः) चन्द्रकिरणों के समान आह्लाददायक ये रस (श्रुष्टे) शीघ्र ही (स्वर्विदः) मोक्षसुख को प्राप्त करानेवाले हों ॥१॥
भावार्थ - ज्ञान, कर्म और उपासना के रस ही वास्तविक सोम हैं, जो पीने पर मनुष्य को उन्नत कर देते हैं ॥१॥
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