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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 716
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
प्र꣢ व꣣ इ꣡न्द्रा꣢य꣣ मा꣡द꣢न꣣ꣳ ह꣡र्य꣢श्वाय गायत । स꣡खा꣢यः सोम꣣पा꣡व्ने꣢ ॥७१६॥
स्वर सहित पद पाठप्र꣢ । वः꣣ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । मा꣡द꣢꣯नम् । ह꣡र्य꣢꣯श्वाय । ह꣡रि꣢꣯ । अ꣣श्वाय । गायत । स꣡खा꣢꣯यः । स । खा꣡यः । सोमपा꣡व्ने꣢ । सो꣣म । पा꣡व्ने꣢꣯ ॥७१६॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र व इन्द्राय मादनꣳ हर्यश्वाय गायत । सखायः सोमपाव्ने ॥७१६॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । वः । इन्द्राय । मादनम् । हर्यश्वाय । हरि । अश्वाय । गायत । सखायः । स । खायः । सोमपाव्ने । सोम । पाव्ने ॥७१६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 716
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में मन्त्रसंख्या १५६ पर परमात्मा और राजा के पक्ष में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ जीवात्मा के पक्ष में व्याख्या करते हैं।
पदार्थ -
हे (सखायः) साथियो ! (वः) तुम (हर्यश्वाय) ज्ञान ग्रहण कराने और कर्मों को करानेवाले ज्ञानेन्द्रिय तथा कर्मेन्द्रिय रूप घोड़े जिसके पास हैं ऐसे, (सोमपाव्ने) ब्रह्मानन्दरस का पान करनेवाले (इन्द्राय)अपने अन्तरात्मा के लिये (मादनम्) हर्षक एवं उद्बोधक गीत (प्र गायत) भली-भाँति गाया करो ॥१॥
भावार्थ - अपने आत्मा को उद्बोधन देकर ही सब लोग संसार-समर में विजय तथा ब्रह्मानन्दरस पा सकते हैं ॥१॥
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