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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 717
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
श꣢꣫ꣳसेदु꣣क्थ꣢ꣳ सु꣣दा꣡न꣢व उ꣣त꣢ द्यु꣣क्षं꣢꣫ यथा꣣ न꣡रः꣢ । च꣣कृमा꣢ स꣣त्य꣡रा꣢धसे ॥७१७॥
स्वर सहित पद पाठश꣡ꣳस꣢꣯ । इत् । उ꣣क्थ꣢म् । सु꣣दा꣡न꣢वे । सु꣣ । दा꣡न꣢वे । उ꣡त꣢ । द्यु꣣क्ष꣢म् । द्यु꣣ । क्ष꣢म् । य꣡था꣢꣯ । न꣡रः꣢꣯ । च꣣कृम꣢ । स꣣त्य꣡रा꣢धसे । स꣣त्य꣢ । रा꣣धसे ॥७१७॥
स्वर रहित मन्त्र
शꣳसेदुक्थꣳ सुदानव उत द्युक्षं यथा नरः । चकृमा सत्यराधसे ॥७१७॥
स्वर रहित पद पाठ
शꣳस । इत् । उक्थम् । सुदानवे । सु । दानवे । उत । द्युक्षम् । द्यु । क्षम् । यथा । नरः । चकृम । सत्यराधसे । सत्य । राधसे ॥७१७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 717
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में परमात्मा की स्तुति के लिये प्रेरणा है।
पदार्थ -
हे साथी ! तू (सुदानवे) उत्कृष्ट दानी इन्द्र परमात्मा के लिए (उक्थम्) स्तोत्र का (उत) और (द्युक्षम्) तेज का निवास करानेवाले उसके गुण-कर्म-स्वभाव का (शंस इत्) अवश्य कीर्तन कर, (यथा) जिस प्रकार (नरः) नेता हम लोग (सत्यराधसे) सच्चे धनवाले उसके लिये (चकृम) स्तोत्र का तथा उसके गुण-कर्म-स्वभाव का कीर्तन करते हैं ॥२॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥२॥
भावार्थ - सब मनुष्यों को चहिये कि जगदीश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव का कीर्तन करके उसके अनुकूल अपना जीवन बनायें ॥२॥
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