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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 75
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - पूषा
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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शु꣣क्रं ते꣢ अ꣣न्य꣡द्य꣢ज꣣तं꣡ ते꣢ अ꣣न्य꣡द्वि꣢꣯षुरूपे꣣ अ꣡ह꣢नी꣣ द्यौ꣡रि꣢वासि । वि꣢श्वा꣣ हि꣢ मा꣣या꣡ अव꣢꣯सि स्वधावन्भ꣣द्रा꣡ ते꣢ पूषन्नि꣣ह꣢ रा꣣ति꣡र꣢स्तु ॥७५॥
स्वर सहित पद पाठशु꣣क्र꣢म् । ते꣣ । अन्य꣢त् । अ꣣न् । य꣢त् । य꣣जतम् । ते꣣ । अन्य꣢त् । अ꣣न् । य꣢त् । वि꣡षु꣢꣯रूपे । वि꣡षु꣢꣯ । रू꣣पेइ꣡ति꣢ । अ꣡ह꣢꣯नी । अ । ह꣣नीइ꣡ति꣢ । द्यौः । इ꣣व । असि । वि꣡श्वाः꣢꣯ । हि । मा꣣याः꣢ । अ꣡व꣢꣯सि । स्व꣣धावन् । स्व । धावन् । भद्रा꣢ । ते꣣ । पूषन् । इह꣢ । रा꣣तिः । अ꣣स्तु ॥७५॥
स्वर रहित मन्त्र
शुक्रं ते अन्यद्यजतं ते अन्यद्विषुरूपे अहनी द्यौरिवासि । विश्वा हि माया अवसि स्वधावन्भद्रा ते पूषन्निह रातिरस्तु ॥७५॥
स्वर रहित पद पाठ
शुक्रम् । ते । अन्यत् । अन् । यत् । यजतम् । ते । अन्यत् । अन् । यत् । विषुरूपे । विषु । रूपेइति । अहनी । अ । हनीइति । द्यौः । इव । असि । विश्वाः । हि । मायाः । अवसि । स्वधावन् । स्व । धावन् । भद्रा । ते । पूषन् । इह । रातिः । अस्तु ॥७५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 75
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 8;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 8;
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विषय - अगले मन्त्र का पूषा देवता है। पूषा नाम से परमात्मा की महिमा का वर्णन करते हुए उससे प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ -
हे (पूषन्) सब दृष्टियों से परिपुष्ट तथा पुष्टि देनेवाले परमात्मन् ! (ते) आपका, आप द्वारा रचा हुआ (अन्यत्) एक अर्थात् दिन (शुक्रम्) सफेद है, (ते) आपकी रची हुई (अन्यत्) दूसरी अर्थात् रात्रि (यजतम्) यज्ञ-धूम के समान कृष्णवर्ण भी है। इस प्रकार आपके रचे हुए (अहनी) दिन-रात (विषुरूपे) विषम रूपवाले हैं। किन्तु स्वयं आप (द्यौः इव) सूर्य के समान प्रकाशमान (असि) हैं। हे (स्वधावन्) सब भोग्य पदार्थों के स्वामिन् ! आप (विश्वाः हि) सभी (मायाः) बुद्धिकौशलपूर्ण जगत्प्रपंचों की (अवसि) रक्षा करते हो। (ते) आपका (भद्रा) कल्याणकारी (रातिः) दान (इह) हमारे जीवन में (अस्तु) हमें प्राप्त हो ॥३॥ इस मन्त्र में स्वयं सूर्य के समान भास्वर भी परमेश्वर सफेद और काली दोनों रूपोंवाली सृष्टि करता है, इस प्रकार कारण और कार्य के गुणों में आंशिक विरोध वर्णित होने से विषम अलङ्कार है ॥३॥
भावार्थ - जिस परमात्मा ने दिन-रात आदि विलक्षण वस्तुएँ बनायी हैं और जो सारे जगत्प्रपंच का रक्षक है, उसके उपकार हमें सदा स्मरण करने चाहिएँ ॥३॥
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