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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 74
ऋषिः - वत्सप्रिर्भालन्दनः
देवता - अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
11
प्र꣢ भू꣣र्ज꣡य꣢न्तं म꣣हां꣡ वि꣢पो꣣धां꣢ मू꣣रै꣡रमू꣢꣯रं पु꣣रां꣢ द꣣र्मा꣡ण꣢म् । न꣡य꣢न्तं गी꣣र्भि꣢र्व꣣ना꣡ धियं꣢꣯ धा꣣ ह꣡रि꣢श्मश्रुं꣣ न꣡ वर्मणा꣢꣯ धन꣣र्चि꣢म् ॥७४॥
स्वर सहित पद पाठप्र꣢ । भूः꣣ । ज꣡य꣢꣯न्तम् । म꣣हा꣢म् । वि꣣पोधा꣢म् । वि꣣पः । धा꣢म् । मू꣣रैः꣢ । अ꣡मू꣢꣯रम् । अ꣢ । मू꣣रम् । पुरा꣢म् । द꣣र्मा꣡ण꣢म् । न꣡य꣢꣯न्तम् । गी꣣र्भिः꣢ । व꣣ना꣢ । धि꣡य꣢꣯म् । धाः꣢ । ह꣡रि꣢꣯श्मश्रुम् । ह꣡रि꣢꣯ । श्म꣣श्रुम् । न꣢ । व꣡र्म꣢꣯णा । ध꣣नर्चि꣢म् ॥७४॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र भूर्जयन्तं महां विपोधां मूरैरमूरं पुरां दर्माणम् । नयन्तं गीर्भिर्वना धियं धा हरिश्मश्रुं न वर्मणा धनर्चिम् ॥७४॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । भूः । जयन्तम् । महाम् । विपोधाम् । विपः । धाम् । मूरैः । अमूरम् । अ । मूरम् । पुराम् । दर्माणम् । नयन्तम् । गीर्भिः । वना । धियम् । धाः । हरिश्मश्रुम् । हरि । श्मश्रुम् । न । वर्मणा । धनर्चिम् ॥७४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 74
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 8;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 8;
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विषय - अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि कैसे परमात्मा की पूजा करनी चाहिए और कैसे पुरुष को राजा के पद पर बैठाना चाहिए।
पदार्थ -
हे मनुष्य ! तू (प्र भूः) समर्थ बन, प्रकृष्ट गुणोंवाला हो। और (जयन्तम्) विजेता, (महाम्) महान्, (विपोधाम्) बुद्धिमानों के सहायक, (मूरैः) मारनेवालों से (अमूरम्) न मारे जा सकनेवाले, (पुराम्) शत्रु-नगरियों के (दर्माणम्) विदारक, (गीर्भिः) स्तुति-वाणियों से (वना) भजने-योग्य, (धियम्) प्रज्ञा व कर्म को (नयन्तम्) प्राप्त करानेवाले, (हरिश्मश्रुं न) स्वर्णिम किरणोंवाले सूर्य के समान (वर्मणा) रक्षा के हेतु से (धनर्चिम्) ज्योतिरूप धनवाले (अग्निम्) परमात्मा को (धाः) अपने हृदय में धारण कर, और उक्त गुणोंवाले (अग्निम्) वीर पुरुष को (धाः) राजा के पद पर प्रतिष्ठित कर ॥२॥ इस मन्त्र में उपमा और अर्थश्लेष अलङ्कार हैं ॥२॥
भावार्थ - सब प्रजाजनों को चाहिए कि वे समर्थ और गुणवान् होकर सब शत्रुओं के विजेता, महामहिमाशाली, बुधजनों के मित्र, हिंसकों से भी हिंसा न किये जा सकने योग्य, शत्रु की किलेबन्दियों को तोड़नेवाले, स्तुतियों से सम्भजनीय, ज्ञानप्रदाता, सत्कर्मों में प्रेरित करनेवाले, सूर्य के सदृश ज्योतिष्मान् परमात्मा को पूजें और उक्त गुणोंवाले वीर पुरुष को राजा के पद पर प्रतिष्ठित करें ॥२॥
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