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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 755
ऋषिः - अवत्सारः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
अ꣣स्य꣢ प्र꣣त्ना꣢꣫मनु꣣ द्यु꣡त꣢ꣳ शु꣣क्रं꣡ दु꣢दुह्रे꣣ अ꣡ह्र꣢यः । प꣡यः꣢ सहस्र꣣सा꣡मृषि꣢꣯म् ॥७५५॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡स्य꣢ । प्र꣣त्ना꣢म् । अ꣡नु꣢꣯ । द्यु꣡त꣢꣯म् । शु꣣क्र꣢म् । दु꣣दुह्रे । अ꣡ह्र꣢꣯यः । अ । ह्र꣣यः । प꣡यः꣢꣯ । स꣣हस्रसा꣢म् । स꣣हस्र । सा꣢म् । ऋ꣡षि꣢꣯म् ॥७५५॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्य प्रत्नामनु द्युतꣳ शुक्रं दुदुह्रे अह्रयः । पयः सहस्रसामृषिम् ॥७५५॥
स्वर रहित पद पाठ
अस्य । प्रत्नाम् । अनु । द्युतम् । शुक्रम् । दुदुह्रे । अह्रयः । अ । ह्रयः । पयः । सहस्रसाम् । सहस्र । साम् । ऋषिम् ॥७५५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 755
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम मन्त्र में सोम नामक परमात्मा का विषय है।
पदार्थ -
(अस्य) इस (सोम) की अर्थात् सौम्य तेजवाले परमात्मा की (प्रत्नाम्) पुरातन, (सहस्रसाम्) असंख्यात फल प्रदान करनेवाली, (ऋषिम्) अनेक कार्यों को सिद्ध करनेवाली (द्युतम्) सौम्य द्युति का (अनु) अनुकूल ध्यान करके (अह्रयः) व्याप्त विद्यावाले विद्वान् उपासकजन (शुक्रम्) शुद्ध (पयः) ब्रह्मानन्दरूप रस को (दुदुह्रे) दुह लेते हैं, पा लेते हैं ॥१॥
भावार्थ - जो सौम्य, शुद्ध परमात्मा अपने उपासकों के हृदय में शुद्ध ब्रह्मानन्द रस को बहाता है, उसकी सौम्य द्युति में ध्यान सबको लगाना चाहिए ॥१॥
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