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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 757
ऋषिः - अवत्सारः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
अ꣣यं꣡ विश्वा꣢꣯नि तिष्ठति पुना꣣नो꣡ भुव꣢꣯नो꣣प꣡रि꣢ । सो꣡मो꣢ दे꣣वो꣡ न सूर्यः꣢꣯ ॥७५७॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣य꣢म् । वि꣡श्वा꣢꣯नि । ति꣣ष्ठति । पुनानः꣢ । भु꣡व꣢꣯ना । उ꣣प꣡रि꣢ । सो꣡मः꣢꣯ । दे꣡वः꣢ । न । सू꣡र्यः꣢꣯ ॥७५७॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं विश्वानि तिष्ठति पुनानो भुवनोपरि । सोमो देवो न सूर्यः ॥७५७॥
स्वर रहित पद पाठ
अयम् । विश्वानि । तिष्ठति । पुनानः । भुवना । उपरि । सोमः । देवः । न । सूर्यः ॥७५७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 757
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में पुनः उसी विषय का वर्णन है।
पदार्थ -
(अयम्) यह (सोमः) सौम्य, जगत्स्रष्टा परमात्मा (देवः) प्रकाशक (सूर्यः न) सूर्य के समान (विश्वानि) सब हृदयों को (पुनानः) पवित्र करता हुआ (भुवना उपरि) सब भुवनों के ऊपर, उनका अधिष्ठाता बनकर (तिष्ठति) विराजमान है ॥३॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥३॥
भावार्थ - जैसे सूर्य सौरमण्डल का अधिष्ठाता है, वैसे ही परमात्मा विश्वब्रह्माण्ड का अधिष्ठाता है ॥३॥
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