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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 779
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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य꣡स्य꣢ ते स꣣ख्ये꣢ व꣣य꣡ꣳ सा꣢स꣣ह्या꣡म꣢ पृतन्य꣣तः꣢ । त꣡वे꣢न्दो द्यु꣣म्न꣡ उ꣢त्त꣣मे꣢ ॥७७९॥

स्वर सहित पद पाठ

य꣡स्य꣢꣯ । ते꣣ । सख्ये꣢ । स꣣ । ख्ये꣢ । व꣣य꣢म् । सा꣣सह्या꣡म꣢ । पृ꣣तन्यतः꣢ । त꣡व꣢꣯ । इ꣣न्दो । द्युम्ने꣢ । उ꣣त्तमे꣢ ॥७७९॥


स्वर रहित मन्त्र

यस्य ते सख्ये वयꣳ सासह्याम पृतन्यतः । तवेन्दो द्युम्न उत्तमे ॥७७९॥


स्वर रहित पद पाठ

यस्य । ते । सख्ये । स । ख्ये । वयम् । सासह्याम । पृतन्यतः । तव । इन्दो । द्युम्ने । उत्तमे ॥७७९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 779
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
हे (इन्दो) तेजस्वी जगदीश्वर, आचार्य और राजन् ! (यस्य ते) जिन आपकी (सख्ये) मित्रता में (वयम्) हम हैं, वे हम लोग (पृतन्यतः) सेना से चढ़ाई करनेवाले आन्तरिक और बाह्य शत्रुओं को (सासह्याम)अतिशय रूप से बार-बार पराजित कर देवें और (तव) आपके दिये हुए (उत्तमे) उत्तम (दयुम्ने) यश में,हम रहें ॥२॥

भावार्थ - सबको चाहिए कि परमेश्वर की उपासना करके, गुरु को शिष्यभाव से प्राप्त करके और राजा की सहायता पाकर सब काम, क्रोध आदि आन्तरिक रिपुओं को एवं बाह्य शत्रुओं को निर्मूल करके यशस्वी बनें ॥२॥

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