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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 796
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
इ꣢न्द्र꣣मि꣢द्गा꣣थि꣡नो꣢ बृ꣣ह꣡दिन्द्र꣢꣯म꣣र्के꣡भि꣢र꣣र्कि꣡णः꣢ । इ꣢न्द्रं꣣ वा꣡णी꣢रनूषत ॥७९६॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्र꣢꣯म् । इत् । गा꣣थि꣡नः꣢ । बृ꣣ह꣢त् । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣र्के꣡भिः꣢ । अ꣣र्कि꣡णः꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । वा꣡णीः꣢꣯ । अ꣣नूषत ॥७९६॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रमिद्गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किणः । इन्द्रं वाणीरनूषत ॥७९६॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्रम् । इत् । गाथिनः । बृहत् । इन्द्रम् । अर्केभिः । अर्किणः । इन्द्रम् । वाणीः । अनूषत ॥७९६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 796
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में १९८ क्रमाङ्क पर परमात्मा के पक्ष में व्याख्यात की जा चुकी है। यहाँ जीवात्मा का विषय कहा जा रहा है।
पदार्थ -
(इन्द्रम्) देह के अधिष्ठाता, काम-क्रोध आदि शत्रुओं को पराजित करनेवाले वीर जीवात्मा की (इत्) निश्चय ही (गाथिनः) गायक लोग (बृहत्) बहुत अधिक (अनूषत) स्तुति करते हैं। (इन्द्रम्) जीवात्मा की (अर्किणः) मन्त्रपाठी लोग (अर्कैः) वेदमन्त्रों से (अनूषत) स्तुति करते हैं। (इन्द्रम्) उसी जीवात्मा की (वाणीः) अन्य वाणियाँ (अनूषत) स्तुति करती हैं ॥१॥
भावार्थ - जीवात्मा ही देहराज्य का सम्राट् है, जो मन, बुद्धि, प्राण, इन्द्रिय आदियों को यथास्थान बैठाकर देहराज्य का सञ्चालन करता है ॥१॥
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