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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 841
ऋषिः - कश्यपो मारीचः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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इ꣣षे꣡ प꣢वस्व꣣ धा꣡र꣢या मृ꣣ज्य꣡मा꣢नो मनी꣣षि꣡भिः꣢ । इ꣡न्दो꣢ रु꣣चा꣡भि गा इ꣢हि꣢ ॥८४१॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣣षे꣢ । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । मृ꣣ज्य꣡मा꣢नः । म꣣नीषि꣡भिः꣢ । इ꣡न्दो꣢꣯ । रु꣣चा꣢ । अ꣣भि꣢ । गाः । इ꣣हि ॥८४१॥


स्वर रहित मन्त्र

इषे पवस्व धारया मृज्यमानो मनीषिभिः । इन्दो रुचाभि गा इहि ॥८४१॥


स्वर रहित पद पाठ

इषे । पवस्व । धारया । मृज्यमानः । मनीषिभिः । इन्दो । रुचा । अभि । गाः । इहि ॥८४१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 841
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
हे (इन्दो) तेजस्वी, विद्या के खजाने आचार्य ! (मनीषिभिः) चिन्तनशील शिष्यों के द्वारा (मृज्यमानः) नमस्कारों से अलङ्कृत किये जाते हुए आप (इषे) इच्छासिद्धि के लिए (धारया) विद्या की धारा से (पवस्व) शिष्यों को पवित्र कीजिए। आप (रुचा) दीप्ति के साथ (गाः अभि) स्तोता शिष्यों के प्रति (इहि) जाइए ॥१॥

भावार्थ - शिष्य समर्पण भाव से गुरुओं के प्रति जाएँ और गुरु निश्छल मन से शिष्यों के पास पहुँचकर सब विद्याएँ प्रदान करें ॥१॥

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